मांझी डिफ्यूज करने के लिए आरजेडी ने उतारी दलित नेताओं की फौज

बिहार विधानसभा चुनाव में दलित मतों को लेकर सियासी बिसात बिछाई जाने लगी है. जेडीयू और आरजेडी दोनों ही पार्टी खुद दलित हितैषी बताने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही हैं. हिंदुस्तान आवाम मोर्चा के अध्यक्ष जीतन राम मांझी ने महागठबंधन से नाता तोड़ लिया और जेडीयू के साथ हाथ मिला सकते हैं. ऐसे में मांझी फैक्टर को डिफ्यूज करने के लिए आरजेडी ने अपने दलित नेताओं की पूरी फौज ही मैदान में उतार दी है. इस तरह से दोनों पार्टियों के बीच दलित मतों को लेकर शह-मात का खेल शुरू है.बिहार की राजनीति में मांझी दलित चेहरा माने जाते हैं. ऐसे में महागठबंधन से मांझी के अलग होने को विपक्ष के लिए एक झटका माना जा रहा है. इसीलिए गुरुवार को आरजेडी ने श्याम रजक, उदय नारायण चौधरी, रमई राम समेत अन्य तीन दलित दिग्गज नेताओं के जरिए प्रेस कॉन्फ्रेंस कराकर जेडीयू को यह संकेत दे दिया है कि मांझी के जाने से उनकी राजनीति पर कोई असर नहीं पड़ा है. श्याम रजक, उदय नारायण चौधरी और रमई राम बिहार में दलित राजनीति का चेहरा माने जाते हैं.दिलचस्प बात यह है कि एक दौर में इन्हीं तीन चेहरों के सहारे नीतीश कुमार सूबे में दलित मतों को साधने का काम किया करते थे. ये तीनों नेता अब जेडीयू का साथ छोड़ चुके हैं और आरजेडी की तरफ से सियासी पिच पर बैटिंग कर रहे हैं. इनमें रमई राम रविदास समुदाय से आते हैं. इस समुदाय की बिहार में खासी आबादी है. वहीं, उदय नारायण चौधरी पासी (ताड़ी बेचने वाले) समुदाय से हैं जबकि श्याम रजक धोबी समुदाय से आते हैं. इस तरह से आरजेडी ने बिहार में दलित समुदाय के इन तीन जातियों नेताओं को उतारकर जेडीयू को दलित विरोधी बताने की कोशिश की है.

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