पत्रकारों पर हमले अत्यचारों और शर्मसार करने वाली घटनाओं पर सरकार को सोचना होगा : निगार फारूखी
गाजियाबाद। लायक हुसैन।
पिछले कुछ समय से पत्रकारों पर हमले अत्यचारों और शर्मसार करने वाली घटनाएं घट रही हैं, जबकि पत्रकार वह वर्ग है जिसने आज़ादी की लड़ाई में क़ुरबानियां दीं, और जब देश और दुनिया में मुश्किल समय होता है, मसलन चाहे युद्ध हो दंगे हों, अशांति हो महामारी हो, पत्रकार पहली पंक्ति में खड़े होकर देश और दुनियां की सच्चाई सामने लाता है, अब हकीकत को नकारा नहीं जा सकता चूंकि अगर पत्रकार न हों तो हमें पता ही न चले कि देश और दुनियां में क्या घटित हो रहा है, कहां क्या हो रहा है ,हम अनभिज्ञ हो जाएं, अभी हाल ही में जब समूचे देश में हाहाकार मचा हुआ था और कोरोना काल में अपनी जान की बिना परवाह करते हुए हम तक हर ख़बर पहुंचाने का कार्य सिर्फ हमारे पत्रकार भाई बहनों ने ही किया था, और बात यहीं पर खत्म नहीं होती चूंकि कई पत्रकारों ने तो अपनी जान तक गंवाई, संविधान ने जिन्हें चौथे स्तंभ का दर्जा दिया हो उसे कानपुर पुलिस ने नंगा कर दिया, और उसकी ID भी वायरल की, सारे कपड़े उतरवाए सारे कपड़े तो गुंडे मवालियों के भी नहीं उतरवाए जाते, अब ऐसे में देखा जाए तो शायद कानपुर पुलिस आदिकाल में जी रही है, लेकिन आदिकाल में भी पत्तों का प्रावधान था, लेकिन कानपुर पुलिस ने सारी हदें पार कर दीं, एक बुद्धिजीवी वर्ग के सदस्य के साथ इतना भद्दा व्यव्हार कहें या इसे अतयाचार का नाम दिया जाए, अब समझने वाली बात तो यह है कि आखिर कहां जा रहा है हमारा समाज और संस्थाएं पहले अगर किसी के साथ कोई लड़ाई, झगड़ा, मतभेद हुआ करता था तो उसके भी कुछ नियम क़ायदे क़ानून हुआ करते थे, कानपुर से कुछ ही दूरी पर बसा हुआ तहज़ीब का शहर लखनऊ है, जहां अगर किसी के साथ कोई मतभेद हो तो कहा जाता था कि लखनऊ में ऐसा… और अब भी है कि देखिए अगर ऐसा ही रहा तो हम आपकी शान में गुसताख़ी कर देंगें, जनसेवक घृणित कार्य का पुरजोर विरोध करता है और लखनऊ में बैठी सरकार से शीघ्र संज्ञान लेने की अपील करता है, और सरकार को चाहिए कि वह ऐसे पुलिस कर्मियों को तत्काल प्रभाव से सस्पेंड करके उन्हें आजीवन घर में बैठा दिया जाए तो इससे बेहतर कार्य और कोई सरकार का नहीं माना जाएगा और इससे पत्रकारों का मनोबल भी बढ़ेगा और सरकार के प्रति समाज में भी अच्छा मैसेज जाएगा।