मिशन 2022: ब्राह्मण-दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे सत्ता पाने की आस में बसपा

लखनऊ। बहुजन समाज पार्टी आगामी 2022 विधान सभा चुनाव को लेकर एक बार फिर इसी सोशल इंजीनियरिंग को अपना हथियार बना लिया है इस रणनीति को सफल बनाने की कमान राष्ट्रीय महा​सचिव सतीश चंद्र मिश्र के कंधों पर है। उत्तर प्रदेश की राजनीति में सपा और बसपा दो ऐसी क्षेत्रीय पार्टियां हैं, जिनका अस्तित्व ही जातिगत वोट बैंक पर टिका है चुनाव नजदीक देख बीएसपी अपने वोट बैंक के लिए जातीय समीकरण साधने में भी जुट गई हैं ।

सोशल इंजीनियरिंग फार्मूला के तहत इसकी शुरुआत अयोध्या में ‘प्रबुद्ध वर्ग संवाद, सुरक्षा, सम्मान विचार गोष्ठी’ से हो चुकी है। बसपा प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन के जरिये प्रदेश के 75 जिलों में चुनावी समीकरण साधने में लगी है। मुज्जफरनगर में किसान महापंचायत में एक ही मंच पर हिन्दु,मुस्लिम जिदांबार के नारे लगने से एक बार फिर से बसपा को सत्ता पाने की आस जग गयी है। वैसे भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश बसपा के लिए रानीतिक उपजाउ जमीन माना जाता रहा है।

लेकिन 2013 के मुज्जफरनगर दंगे के बाद बसपा की यह जमीन खिसक गयी थी अब एक बार बाहमण,​दलित,मुस्लिम गठजोड़ कर आगामी 2022 विधान चुनाव में बीएसपी सत्ता पाने के लिए मैदान में उतर चुकी है। बसपा के बैनर पर परशुराम और श्रीराम दिखाई देने लगे हैं, सभाओं की शुरुआत शंख की ध्वनी और मंत्रोच्चार के साथ हो रहा है।

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों की आबादी 12-13 फीसदी के बीच है । कुछ विधानसभा क्षेत्र ऐसे हैं जहां ब्राह्मणों की आबादी 20 प्रतिशत के आसपास है। यहां ब्राह्मण मतदाताओं का रुझान उम्मीदवार की जीत और हार तय करता है. बसपा और सपा की नजर ऐसे ही ब्राह्मण बाहुल्य विधानसभा सीटों पर है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर, हाथरस, अलीगढ़, मेरठ के अलावा ज्यादातर ऐसे जिले पूर्वांचल और लखनऊ के आस-पास के हैं, जहां ब्राह्मण मतदाता उम्मीदवार की हार और जीत तय करने की स्थिति में हैं ।

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