Jhabua- भक्ति पथ पर आगे बढ़ने के लिए जरूरी है, निष्ठा पूर्वक नाम स्मरण डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा
Jhabua-भगवान् श्री कृष्ण के चरणों का आश्रय लेकर दृढ़ निष्ठा पूर्वक नाम स्मरण से भक्ति पथ पर आगे बढ़ा जा सकता है, और तब उन परमात्मा की कृपा भासने लगती है। दयालु प्रभु सबके सुह्रद हैं, और सब जीव उनके अपने हैं, इसलिए वे कभी भी किसी का अनिष्ट नहीं करते हैं। वे किसी का वध नहीं करते हैं, वरन् वे जीवों को तार देते हैं, उनका कल्याण करते हैं। उपरोक्त कथन श्रीमद्भागवत महापुराण में वर्णित प्रह्लाद प्रसंग के उल्लेख के दौरान डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने व्यासपीठ से व्यक्त किए।
शर्मा शनिवार को जिले के थान्दला में श्रीमद्भागवत भक्ति पर्व के अन्तर्गत आयोजित नौ दिवसीय श्रीमद्भागवत सप्ताह महोत्सव के तीसरे दिवस स्थानीय श्रीलक्ष्मीनारायण मंदिर सभागार में कथावाचन कर रहे थे। भागवत सप्ताह भाद्रपद मास शुक्ल पक्ष अष्टमी से आरम्भ हुआ था, ओर आज शनिवार को कथा तीसरे दिन में प्रवेश कर गई। शर्मा ने प्रह्लाद की अपने प्रभु के चरणों में द्रढ़ निष्ठा का उल्लेख करते हुए कहा कि अत्यन्त विषम ओर दुःख दायी परिस्थितियों में भी प्रह्लाद न तो जरा भी विचलित हुए, और न ही उनकी प्रभु निष्ठा में किसी भी तरह से कमी आई। विपरीत समय में भी वे निष्ठावान बने रहे। वे भक्ति पथ पर अडिग रहे, परिणामस्वरूप भगवान् को नृसिंह रूप में अवतार लेकर इस धराधाम पर आना पड़ा। कहने में तो भगवान् ने हिरण्यकशिपु का वध किया किंतु भगवान् कभी भी किसी को मारते नहीं, बल्कि सबके सुह्रद परमात्मा वध के रूप भी उसका परम हित, परम कल्याण ही करते हैं। भगवान् ने दैत्य राज हिरण्यकशिपु का भी कल्याण ही किया, तथा अपने प्रेमी भक्त प्रह्लाद की रक्षा करते हुए उन्होंने स्वयं अपने आपको ही दे दिया।
श्रीमद्भागवत में उल्लेखित अजामिल कथा प्रसंग का वर्णन करते हुए डॉ. उमेशचन्द्र शर्मा ने कहा कि भगवान् श्री कृष्ण, श्री राम का नाम पाप राशि को दग्ध कर सब तरह से मंगल करता है। जैसे अग्नि में जानते हुए या अनजाने में हाथ डालने पर अग्नि जलाती है, ओर जाने अनजाने में विषपान करने से विष का मारक प्रभाव होता है, उसी प्रकार भगवान् का नाम भी अपना प्रभाव डालते हुए दसों दिशाओं में मंगल करता है। फिर भगवन्नाम चाहे भाव से लिया जाए बिना भाव से लिया जाए, वह अपना प्रभाव दिखाता ही है। परमात्मा के अनगिनत नाम है, और सब नाम समान रूप से दिव्य और प्रभावी है, फिर चाहे राम, कृष्ण, शिव या हरि का नाम लिया जाए, नाम में कहीं कोई भेद नहीं है। नाम चाहे कोई भी लें, उसमें प्रेम और निष्ठा जरूरी है।