”Vida hoti Betiyan”: डॉ. ओम प्रकाश की पुस्तक ने सोशल मीडिया पर मचाई धूम

”Vida hoti Betiyan”: साहित्य के क्षेत्र में उप महाप्रबंधक मानव संसाधन राजभाषा (एनटीपीसी) एवं ख्यातिप्राप्त लेखक डॉ. ओम प्रकाश की पुस्तक “विदा होती बेटियाँ” इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चर्चा में है। भावनाओं की गहराइयों को छूने वाली इस पुस्तक ने पाठकों के दिलों में एक खास जगह बना ली है।समाज की जटिलताओं और बेटियों के विदा होने की पीड़ा को अत्यंत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती यह पुस्तक न केवल साहित्य प्रेमियों बल्कि आम पाठकों को भी गहराई से प्रभावित कर रही है।
डॉ ओम प्रकाश उप महा प्रबन्धक मानव संसाधन राजभाषा एनटीपीसी सिगरौली ने इस कृति के माध्यम से पारिवारिक संबंधों, सामाजिक सोच और बेटियों की संवेदनाओं को जिस संवेदनशीलता से शब्द दिए हैं, वह उनकी साहित्यिक प्रतिभा का जीवंत प्रमाण है।
एनटीपीसी में डॉ ओम प्रकाश उप महा प्रबन्धक मानव संसाधन राजभाषा में एनटीपीसी सिगरौली में कार्यरत होने के बाद साहित्य के प्रति समर्पण प्रेरणादायक है। उनकी लेखनी में सामाजिक सरोकार और मानवीय संवेदनाओं का गहरा समावेश दिखाई देता है।
“विदा होती बेटियाँ” को पाठकों द्वारा मिल रही सराहना यह दर्शाती है कि यह पुस्तक आने वाले समय में हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान बनाएगी।पूर्व प्राचार्य, मोती लाल नेहरू कॉलेज, दिल्ली ने विदा होती बेटियाँ*: समय-समाज की दृष्टिसंपन्न संवेदनाएँ में दिविक रमेश ने बताया कवि ओम प्रकाश के कवि रूप को पहली बार ठीक-ठाक से इस संग्रह की कविताओं के माध्यम से जानने का सुखद अवसर मिला है। प्रारंभ में ही संग्रह की कविताओं के बारे में उत्साहवर्द्धक लिखा पढ़ा- “ये कविताएँ समय और सच की सारथी हैं और समाज के बदलाव की पूरक भी। ये कविताएँ आम आदमी की आवाज बन मुखर हों तो सार्थक सिद्ध हो सकेंगी।”

कविता की सहज सम्प्रेषणीयता और पठनीयता ने इस संग्रह की कविताओं को एक-दो बैठक में ही अबाध पढ़वा लिया। मुझे व्यंग्य और दर्द से भरपूर कविता ‘जब तुम लिख रहे थे कविता’ ने कविता की सही जरूरत के इस परोक्ष पाठ से सहज कविता की ताकत के भरोसे से मिलवा दिया।इसके साथ ही एक और कविता ‘कविता’ के शीर्षक से स्वयं सामने आ खड़ी हुई, भयावह समय में एक कवि की जुझारू चुनौती का ध्वज उठाए-

“वक़्त के बहरेपन में/ मुझमें मर रही हैं/ कविताएँ/और एक कवि में/कविता का मर जाना/हमारे समय का/ सबसे ख़ौफ़नाक सच है।”कवि के सरोकारों को सीधे-सीधे समझने और आत्मसात करने के लिए कुछ और अच्छी और विशिष्ट कविताओं को भी पढ़ा जाना चाहिए, जैसे भूख, आग, एक कवि का जाना, विचार, हे प्रभु, आत्महंता आदि। यहीं संग्रह की कविताओं की इस खास विशेषता का भी जिक्र करना जरूरी है कि यह कवि प्रतिरोध का कवि है, लेकिन प्रतिरोध के शोर की नहीं बल्कि प्रतिरोध के रचाव की शैली अपनाता है। मेरे आशय की पुष्टि के लिए बतौर नमूना ‘बोझिल पंख’ कविता को पढ़ा जा सकता है।

संग्रह की कविताओं के अनुभव की दुनिया वैविध्यपूर्ण है। कवि निगाह, जहाँ-जहाँ भी विषमता, क्रूरता और प्रतिकूलता आदि नकारात्मक्त सच्चाइयाँ है, वहाँ-वहाँ गई हैं । वह चाहे जेंडर (नन्हीं सी चिड़िया, बुज़दिली, अपाहिज मानसिकता, स्त्री आदि) की हो या वर्ण (अछूत आदि) की या फिर वर्ग (छोटे लोग, दूसरा जीवन, तमाशबीन समाज, मज़दूर आदि) की हो। कवि की महीन अनुभवात्मक समझ आज के समय को प्राय: मनुष्यता विरोधी पाती है। वह पाती है कि आज ऐसा समय है जिसमें सभी अच्छी चीजें वक्त से पहले विदा की जा रही हैं। कविता ‘मनुष्यत्व’ पढ़ी जा सकती है जो सुंदर भी है और सशक्त भी। इसी के साथ कविता ‘चीख’ को भी पढ़ा जा सकता है। अच्छी बात यह है कि क्रूर सच्चाइयाँ इस रूप में चित्रित हुई हैं कि वे अवसाद या निराशा की ओर न ले जाकर संघर्ष और आशा की ओर जाने को प्रेरित करती हैं। एक कविता का तो शीर्षक ही है-‘उम्मीद है’। कवि ने अपनी एक कविता ‘मछलियाँ’ का अंत एक ताकतवर आशा से ही किया है-
“मछलियाँ/ जिस दिन मगरमच्छ का/ शिकार होने से बचना सीख लेंगी/ मिलकर लड़ना सीख लेंगी/ उस दिन मछलियों के इतिहास में/ मगरमच्छ/ दुम हिलाते नजर आएँगे।”

यही नहीं, ‘जिजीविषा’ कविता में तो मनुष्य को, अपने तमाम क्रूर घेरों को काटकर अपनी सच्ची ताकत को पहचानने की समझ भी दी गई है- “अजीब-सा शख़्स रहता है मुझमें/कि जितना मेरे शब्दों का/गला घोंटते हैं बेरहम/ उतना ही मेरे शब्द/फौलाद बनकर/ फिर-फिर छा जाते हैं अंतर्मन पर।” इस प्रसंग में ‘मुक्ति’ कविता भी एक ज़रूरी कविता बन कर आई है।

संबंधों के जुड़ाव और उसकी सकारात्मकता का ताप महसूस करना हो तो संग्रह की माँ, पिता और प्रेम केंद्रित कविताओं को पढ़ा जा सकता है, जैसे पिता, पिता के सपने, माता-पिता, माँ का अकेलापन, विदा होती बेटियाँ, प्रेम पत्र, प्रेम आदि। इनके अतिरिक्त दो कविताओं, ‘एनटीपीसी हूँ मैं’ और ‘जे.एन.यू में प्रेम’ का अपना महत्त्व है।

मेरा विश्वास है कि पाठक इन कविताओं में वह सब कुछ पाएँगे जिसकी उन्हें ज़रूरत है और जिसके वे आज के समय में हकदार भी हैं।

सोनभद्र से संजय द्विवेदी की रिपोर्ट

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