Digital Fasting: अधिक स्क्रीन टाइम से बन सकते हैं दिमागी मरीज, मूड स्विंग से लोग होंगे परेशान, डिजिटल फास्टिंग है समाधान
Digital Fasting: तेजी से बदलती लाइफस्टाइल और तकनीकी निर्भरता के इस दौर में अधिकतर लोग दिनभर किसी न किसी स्क्रीन से जुड़े रहते हैं—मोबाइल फोन, लैपटॉप, टैबलेट या टीवी। लगातार स्क्रीन एक्सपोजर न सिर्फ आंखों और नींद पर असर डाल रहा है, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य पर भी गंभीर प्रभाव डाल रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि इस समस्या से बचने के लिए “डिजिटल फास्टिंग” जरूरी हो गया है।
क्या है डिजिटल फास्टिंग?
डिजिटल फास्टिंग का मतलब केवल सोशल मीडिया से दूरी बनाना नहीं, बल्कि कुछ समय के लिए मोबाइल, इंटरनेट और सभी स्क्रीन-बेस्ड डिवाइस से खुद को दूर करना है। नई दिल्ली के जनरल फिजिशियन डॉ. सुरेंद्र कुमार के अनुसार, यह दिमाग को रीसेट करने का एक कारगर तरीका है। रिसर्च के अनुसार, लगातार डिजिटल डिवाइस के संपर्क में रहने से नींद की कमी, चिंता, तनाव और फोकस में कमी जैसी समस्याएं सामने आ रही हैं।
डिजिटल फास्टिंग क्यों है जरूरी?
डॉ. सुरेंद्र बताते हैं कि डिजिटल डिटॉक्स सिर्फ एक ट्रेंड नहीं, बल्कि आज के समय की मानसिक स्वास्थ्य संबंधी जरूरत बन चुका है। खासकर उन लोगों के लिए जो अक्सर तनाव, चिड़चिड़ापन और थकान महसूस करते हैं। डिजिटल ब्रेक लेने से न केवल मानसिक शांति मिलती है, बल्कि सोचने और समझने की क्षमता में भी सुधार होता है।
मानसिक थकान और स्क्रीन टाइम का गहरा रिश्ता
लगातार स्क्रीन देखने से आंखें थक जाती हैं, दिमाग भारी हो जाता है और मूड स्विंग्स जैसी समस्याएं पैदा होती हैं। यह मानसिक थकान धीरे-धीरे डिप्रेशन जैसी गंभीर स्थितियों में भी बदल सकती है। ऐसे में डिजिटल फास्टिंग से दिमाग को रिलैक्स होने का मौका मिलता है, जिससे प्रोडक्टिविटी और पॉजिटिव सोच में सुधार आता है।
डिजिटल फास्टिंग की करें आसान शुरुआत
डिजिटल फास्टिंग की शुरुआत छोटे कदमों से की जा सकती है—जैसे सुबह उठते ही एक घंटे तक फोन से दूरी बनाए रखना, शाम के समय एक निश्चित अवधि के लिए मोबाइल बंद करना या हर हफ्ते “नो फोन डे” रखना। “स्क्रीन-फ्री डिनर”, “नो सोशल मीडिया वीकेंड” जैसे छोटे-छोटे नियम बनाकर इसे जीवन में शामिल किया जा सकता है।
डिजिटल फास्टिंग के फायदे
इस फास्टिंग के अनेक फायदे हैं—बेहतर नींद, आंखों पर कम तनाव, स्थिर मूड, बेहतर फोकस और मानसिक ताजगी। सोशल मीडिया से दूरी बनाने पर आत्म-संवेदना बढ़ती है, और नकारात्मक तुलना से बचा जा सकता है। साथ ही, असली दुनिया से जुड़ने का मौका मिलता है—परिवार, प्रकृति और स्वयं के साथ समय बिताने का अनुभव मिलता है।
बच्चों और युवाओं के लिए भी है जरूरी
आज के बच्चे और युवा बहुत कम उम्र से स्क्रीन के आदी हो जाते हैं। इसका असर उनके व्यवहार और स्वास्थ्य दोनों पर पड़ता है। ऐसे में पेरेंट्स को चाहिए कि वे बच्चों को डिजिटल फास्टिंग की आदत डालें—परिवार के साथ आउटडोर गेम्स खेलें, स्क्रीन-फ्री समय तय करें और उन्हें असल जिंदगी से जोड़ें।
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डिजिटल फास्टिंग को बनाएं आदत
डिजिटल फास्टिंग कोई एक बार किया जाने वाला कार्य नहीं है, बल्कि इसे जीवनशैली का हिस्सा बनाना जरूरी है। जैसे शरीर के लिए डाइट या व्रत रखा जाता है, वैसे ही दिमाग को रिचार्ज करने के लिए डिजिटल व्रत की जरूरत होती है। इसके लिए ‘फोमो’ यानी “Fear of Missing Out” को छोड़ना होगा और मानसिक शांति को प्राथमिकता देनी होगी।