Mau News: कुरीतियों,कुप्रथाओं और अंधविश्वासों के विरुद्ध आजीवन लड़ते रहे राजा राम मोहन राय

Mau News: सुप्रसिद्ध यूनानी दार्शनिक सुकरात और प्लेटो तथा यूरोपीय विचारकों गैलीलियो, ब्रूनो, कोपरनिकस तथा केप्लर की परम्परा के सच्चे अर्थों में निडर, निर्भीक और साहसी विद्वान थे राजा राम मोहन राय। क्योंकि सच्चा विद्वान वह होता जो अपने ज्ञान और विचार को सम्पूर्ण समाज के समक्ष बेझिझ्क और बेहिचक प्रकट करने का साहस रखता है। इसके साथ ही सच्चा और ईमानदार विद्वान अपने सच्चे ज्ञान और विचार के लिए पुरी दुनिया से लडने झगड़ने और और अपने सच के लिए मरने-मिटने को तैयार रहता हैं। आधुनिक काल में भारतीय पुनर्जागरण के अग्रदूत तथा साम्प्रदायिकता, अंधविश्वास, असंगत कुरीतियों, कुप्रथाओं ,निराधार मान्यताओं और मूल्यों के घनघोर शत्रु राजा राम मोहन राय ऐसी ही क्रांतिकारी परम्परा के सच्चे ,ईमानदार तथा यथार्थवादी चिंतक, विचारक एवं विद्वान थे। जर्मनी के आदर्शवादी दार्शनिक जार्ज विल्हेम फ्रेड्रिक हीगेल के समकालीन राजा राम मोहन राय जितने गहन, गम्भीर और गहरे विद्वान और विचारक थे उतना ही समाज को बदलने की गहरी, गम्भीर और गहन तडप रखते थे। सत्रह वर्ष की जिस उम्र में मन मस्तिष्क रूमानी ख्व़ाबो और ख्यालों में गोते लगाता रहता हैं उस उम्र में राजा राम मोहन राय स्वतन्त्रता, समानता और भाईचारा के नाम पर लडी जा रही फ्रांसीसी क्रांति से रूबरू हो रहे थे तथा उनका मन मस्तिष्क फ्रांसीसी क्रांति के पवित्र उद्देश्यों के साथ आलिंगन कर रहा था। वस्तुतः सोलहवीं शताब्दी में यूरोपीय महाद्वीप में ताबड-तोड हुए अनगिनत हुए वैज्ञानिक चमत्कारों और आविष्कारों ने नवोदित यूरोपीय राष्ट्रवाद को अद्वितीय शक्ति , सामर्थ्य और उर्जा प्रदान की। वैज्ञानिक चमत्कारों तथा आविष्कारों के फलस्वरूप उत्पन्न प्रौद्यौगिकी ने ब्रिटेन, फ्रांस, जर्मनी और अन्य यूरोपीय देशों को दुनिया की महाशक्ति बना दिया। इन नवोदित महाशक्तियों ने भारत सहित सम्पूर्ण एशिया को अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षा की प्रतिपूर्ति का क्रिडांगन बना दिया । इसके विपरीत भारत सहित सम्पूर्ण एशियायी देशों में आर्थिक अधःपतन, राजनीतिक जर्जरता, सामाजिक विश्रृंखलता और सांस्कृतिक पिछड़ेपन का दृश्य दिखाई देने लगा। इस संक्रमणकालीन हताशा और निराशा से भरी परिस्थितियों की कोख से पैदा हुए राजा राम मोहन राय और उनके विचार।

ब्रिटिश साम्राज्य की निर्मम, निर्लज्ज और क्रूर महत्वाकांक्षा सर्वप्रथम शिकार उस दौर में सर्वाधिक सम्पन्न बंगाल हुआ। इसलिए सामाजिक सांस्कृतिक और धार्मिक सुधार आन्दोलन और पुनर्जागरण का बीजांकुर भी बंगाल की धरती से हुआ। सम्पूर्ण भारतीय इतिहास में बंगाल का पुनर्जागरण आन्दोलन सचमुच एक सर्जनात्मक, रचनात्मक तथा जटिल आंदोलन था और इस आन्दोलन को सफलीभूत करने में राजा राम मोहन राय सहित देवेन्द्रनाथ नाथ टैगोर, ईश्वर चन्द्र गुप्त, मधुसूदन दत्त, अक्षय कुमार दत्त, ईश्वर चन्द्र विद्यासागर, रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, हेमचन्द्र बनर्जी, बंकिमचन्द्र चटर्जी, रबिन्द्र नाथ टैगोर योगी अरबिंद घोष तथा अन्य विभूतियों ने शक्तिशाली भूमिका निभाई परन्तु निर्विवाद रूप से राजा राम मोहन राय बंगाली पुनर्जागरण के सबसे पहले और सबसे प्रखर अधिवक्ता थे। एक धार्मिक और सामाजिक सुधार आन्दोलन के नेता के रूप में उनका व्यक्तित्व विराट और असाधारण था। कुशाग्र बुद्धि राजा राम मोहन राय की विवेचनात्मक और विश्लेषणात्मक शक्ति अद्वितीय थी। उन्होंने धर्म दर्शन के अध्ययन के लिए बुद्धिवादी दृष्टिकोण अपनाया। बौद्धिकता, तार्किकता और दार्शनिकता के सर्वाधिक प्रामाणिक भारतीय साहित्य उपनिषदों, इस्लाम धर्म और ईसाई धर्म की शिक्षा का अध्ययन करने के उपरांत राजाराम मोहन राय की एकेश्वरवाद में आस्था बढती गई। अपने-अपने ईश्वर की सर्वोच्चता को लेकर प्रायः हिंसक संघर्ष करने वाले जन समुदाय को उन्होंने एकेश्वरवाद का संदेश दिया। एकेश्वरवाद के माध्यम से राजा राम मोहन राय ने बुरी तरह बिखरे भारतीयो में व्यापक एकता स्थापित करने और भाईचारा कायम करने का अनूठा प्रयास किया। राजा राम मोहन राय ने मूर्ति पूजा और मूर्ति पूजा से जुड़े कर्मकाण्डो की आड में पनपने वाली अमानवीय कुप्रथाओं पर करारा प्रहार किया। वर्तमान दौर में भी राजा राम मोहन राय का विचार प्रासंगिक है क्योंकि मूर्ति पूजा से जुड़े हुए पाखंड और कुप्रथाएं आज भी चलन-कलन में जिन्दा हैं। प्रकारांतर से राजा राम मोहन राय के धार्मिक विचार मानवतावादी मूल्यों से परिपूर्ण समाज बनाने के लिये अपरिहार्य है।

वैसे तो राजा राम मोहन राय ने बाल विवाह, बहुविवाह, छूऑ-छूत और ऊॅच-नीच जैसी सामाजिक कुरीतियों और कुप्रथाओं के विरूद्ध तीखा प्रहार किया परन्तु सती प्रथा जैसी घिनौनी और अमानवीय प्रथा को समाप्त करने में उन्होंने जो श्लाघनीय भूमिका निभाई वह उन्हें भारतीय इतिहास में एक युगांतरकारी युगपुरूष के रूप में स्थापित करती हैं तथा सती प्रथा को समाप्त करने की परिघटना भारतीय इतिहास में युगांतरकारी परिघटना हैं। निस्संदेह राजा राम मोहन राय ने हिन्दू स्त्रियों को सती की कुत्सित प्रथा से धर्म युद्ध चलाकर गगनचुंबी अमर यशकिर्ति प्राप्त कर ली। राजा राम मोहन राय ने अन्य सामाजिक कुरीतियों के साथ विधवाओं के साथ होने वाले दुर्व्यवहार की जी-भर कर भर्तसना की । उन्होंने अकाट्य तर्क देकर विधवा पुनर्विवाह का पुरजोर समर्थन किया। बहुविवाह को उन्होंने दाम्पत्य संबंधों और दाम्पत्य जीवन के प्राकृतिक सिद्धांतो तथा सनातनीय संस्कृति के विरुद्ध बताया। उनके अनुसार बहुविवाह नारी शोषण और नारी अत्याचार का छ्दम रूप है। राजा राम मोहन राय महिलाओं को पुरुषों के समान शिक्षा और शासन प्रशासन राजनीति कला और साहित्य में समान अवसर देने के प्रबल समर्थक थे। राजा राम मोहन राय की The Abstract of the Arguments Regarding the burning of widows considered as religious rights तथा The modern encroachment on the ancient rights of females according to the hindu law of inheritance महत्वपूर्ण पुस्तिकाओं से स्पष्ट परिलक्षित होता हैं कि-वे हिन्दु स्त्रियों के अधिकारों के महान सर्मथक थे।

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राजा राम मोहन राय मूलतः बुद्धिवादी दृष्टिकोण के सर्वश्रेष्ठ समाज सुधारक थे। इसलिए इनके विचारों में राजनीतिक विषयों पर चिंतन का अभाव पाया जाता हैं। परन्तु कहीं-कहीं मौलिक राजनीतिक विषयों पर उन्होंने स्पष्ट रूप से अपने विचार व्यक्त किये हैं। इंग्लैंड के मशहूर उदारवादी विचारक जान लाॅक और टामस पेन की तरह प्राकृतिक अधिकारों की पवित्रता पर विश्वास करते थे। अन्य उदारवादी चिंतको की तरह राजा राम मोहन राय भी व्यक्ति के जीवन, स्वतंत्रता और निजी सम्पत्ति की रक्षा करना शासन का दायित्व मानते थे। उन्होंने प्राकृतिक अधिकारों का सर्मथन अवश्य किया परन्तु इन प्राकृतिक अधिकारों को भारतीय लोकमानास में प्रचलित आदर्शों से मर्यादित करने का आग्रह भी किया। संवाद कौमुदी और अल- हिलाल जैसी दर्जनों समाचार पत्रों और पत्रकाओ के सम्पादक रहे राजा राम मोहन राय अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता विशेषकर प्रेस की स्वतंत्रता के उत्कट सर्मथक थे। उन्होंने द्वारका नाथ ठाकुर, हरचन्द्र घोष, गौरी शंकर बनर्जी, प्रसन्न कुमार टैगोर तथा चन्द्र कुमार टैगोर के साथ मिलकर सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी।
मर्यादित और नैतिक स्वतंत्रता तथा प्राकृतिक अधिकारों के समर्थक होने के नाते राजा राम मोहन राय महान मानवतावादी थे और वैश्विक स्तर पर सहयोग, साहचर्य और सहिष्णुता के उत्कट हिमायती थे। वे चाहते थे कि- परम्परागत बंधन जिन्होंने मनुष्य के मन और आत्मा को बंदी बना रखा है, उसको खोल दिया जाएँ और मनुष्य को सहिष्णुता, सहानभूति और बुद्धि पर आधारित समाज का निर्माण करने के लिए स्वतंत्र छोड़ दिया जाए। आधुनिक भारत में राजा राम मोहन राय विश्व नागरिकता के प्रथम प्रतिपादक थे। अपने जीवन में उन्होंने सभी धर्मों का गहराई से तुलनात्मक अध्ययन किया था और कालांतर में वह एक सार्वभौम धर्म की आवश्यकता की कल्पना करने लगे थे। परन्तु उनकी सार्वभौम धर्म संकल्पना निश्चित स्वरुप नहीं धारण कर पाई। अंततः उन्होंने आध्यात्मिक संश्लेषण की एक आधारभूत योजना निरूपित की और एक परमेश्वर की आराधना पर आधारित धार्मिक अनुभव की एकता पर बल दिया। प्रकारांतर से राजा राम मोहन राय ने क्रांति द्रष्टा महात्मा कबीर, गुरु नानक, सैयद इब्राहीम रसखान, दादू और तुकाराम जैसे मध्ययुगीन संतों और कवियो के धार्मिक और सामाजिक समन्वय की परम्परा को आगे बढाया।

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