लखनवी चिकन पर संकट के बादल, नहीं मिल पा रहा धागा और कपड़ा
लखनऊ। कोरोना काल से उबरने के बाद अब लखनवी चिकन पर एक बार महंगाई का साया मंडरा रहा है। लखनऊ चिकन की जरदोजी कढ़ाई देश-दुनिया में मशहूर है लेकिन मौजूदा वक्त में यहां के कारीगरों को ज्यादा कीमत अदा करने के बावजूद कढ़ाई का धागा और कपड़ा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं हो पा रहा है। इस उद्योग पर दूसरी मार कोयले की कमी की वजह से हो रही है क्योंकि कपड़ों को रंगने के लिए भट्ठियों में कोयले का उपयोग होता रहा है इसके भी दाम काफी पहुंच गए हैं।
डेढ़ गुना दाम देने पर भी नहीं मिल रहा धागा
चौक में चिकन कारोबार के थोक व्यापारी कृष्णा पाल बताते हैं कि पिछले डेढ़ महीने से कढ़ाई में उपयोग होने वाला धागा पैसा अदा करनेके बावजूद नहीं मिल पा रहा है। वह बताते हैं कि पहले चार किलो धागा 1500 रुपये में आसानी से उपलब्ध हो जाता था। लेकिन धीरे-धीरे इसके दाम बढ़ने शुरू हुए लेकिन अब चार किलो के 2500 रुपये अदा करने के बावजूद धागा नहीं मिल पा रहा है। वह बताते हैं कि यही नहीं जिस कपड़े से कुर्ता और सलवार बनाया जाता है उसको भी मंगाने के लिए एक से डेढ़ महीने का इंतजार करना पड़ रहा है। धागा और कपड़ा दोनों सूरत से आते हैं वहां के व्यापारियों का कहना है कि कोरोना काल में सारे मजदूर और कारीगर वापस अपने घर चले गए जिससे उत्पादन में कमी आई है। इसे फिर से पटरी पर लाने केलिए तीन से चार महीने का समय लग जाएगा।
रंगाई भी हुई महंगी
चिकन कपड़ों की कढाई और सिलाई सफेद कपड़ों में होने के बाद इन्हें रंगा जाता है। जिसके लिए शहर में छोटी-छोटी भट्ठियां लगाई गई हैं जिनमें कोयले का उपयोग किया जाता है। लेकिन बाजार में कोयले की कमी और उनके बढ़ते दामों के कारण रंगाई का काम भी महंगा हुआ है। चौक के थोक कारोबारियों का कहना है कि इस बिगड़ते सिस्टम की वजह से ग्राहकों को दाम ज्यादा अदा करने पड़ेंगे।
कुर्ता बनाने वाला जो कपड़ा 15-20 रुपये मीटर मिल जाता था उसके दाम 70-85 रुपये प्रति मीटर तक पहुंच गए। यह दाम भी अदा करने के बावजूद कपड़ा मिलना मुश्किल हो गया है। त्योहारी सीजन में मांग बढ़ने के बावजूद सामान की आपूर्ति नहीं हो पा रही है…सुरेश छबलानी, वरिष्ठ उपाध्यक्ष, लखनऊ चिकनकारी हैंडीक्राफ्ट एसोसिएशन।