गुलजार का असम्मान ठीक नहीं

ओंकार नाथ सिंह/ सदस्य, मीडिया एवम कम्युनिकेशन एडवाइजरी कमेटी
उत्तर प्रदेश कांग्रेस

केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा गुलजार का असम्मान ठीक नहीं है। शब्दों के बेताज बादशाह लेखक फिल्म निर्देशक नाटककार एवं प्रसिद्ध शायर गुलजार साहब का जो खुलेआम अपमान करने का इजहार किया गया, वह ठीक नहीं है। इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय की एकेडमिक काउंसिल और कार्यपरिषद ने सर्वसम्मति से यह निर्णय लिया कि गुलजार साहब को विश्वविद्यालय की डी लिट उपाधि की मानद से नवाजा जाएगा और इस निर्णय को सर्व सम्मति से केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को अनुमति प्राप्त करने के लिए भेजा गया। चूंकि एकेडमिक काउंसिल जब कोई निर्णय ले लेती है तो यह माना जाता है केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय उस पर अपनी सहमति की मुहर लगा देता है और इसी स्वीकृत की प्रत्याशा की आशा में विश्वविद्यालय ने गुलजार साहब को आमंत्रण भी भेज दिया। यह आमंत्रण विश्वविद्यालय के दीक्षा समारोह का था जो 9 नवंबर 2021 को इलाहाबाद में होना है इसके मुख्य अतिथि केंद्रीय शिक्षा मंत्री श्री धर्मेंद्र प्रधान होंगे। शायद ही कोई होगा जो गुलजार साहब की योग्यता से परिचित न हो। इनका असली नाम संपूर्ण सिंह कालरा है। इनका जन्म अविभाजित भारत जो इस समय पाकिस्तान के हिस्से में है 18 अगस्त 1936 को पंजाब के झेलम जिले के दीना गांव में हुआ था जब देश का बंटवारा हुआ तो इनका परिवार अमृतसर में आकर बस गया। 9 भाई बहनों के बड़े परिवार में गुलजार साहब चौथे नंबर पर हैं और परिवार का खर्च चलाने के लिए मुंबई में आकर एक कार गैरेज में मैकेनिक का काम करने लगे भगवान ने उनको हुनर दे रखा था तो खाली समय में वह कविताएं लिखते थे और धीरे-धीरे हेमंत कुमार प्रसिद्ध गीतकार के संपर्क में आए और फिर ऐसा उस दुनिया में रमे कि फिल्म जगत में उन्होंने धूम मचा दी। उन्होंने हिंदी, उर्दू तथा पंजाबी में मुख्य रचनाएं की इसके साथ ही ब्रजभाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी रचनाएं की। शायद ही कोई ऐसा अवार्ड होगा जो गुलजार साहब को फिल्म जगत और कला के क्षेत्र में ना मिला हो। 1977, 1979,1980, 1983, 1988, 1991,1998, 2002, 2005 में फिल्म फेयर पुरस्कार, 2004 में पद्मभूषण एवार्ड, 2009 में आस्कर एवार्ड, 2010 में ग्रैमी एवार्ड और 2013 में दादा साहब फालके एवार्ड मिला है। अगर ऐसी महान विभूति को यदि इलाहाबाद विश्व विद्यालय की एकेडमिक काउंसिल और कार्य परिषद ने डीलिट की मानद उपाधि देने का निर्णय लिया तो उसे केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय को अनुमति न देने का निर्णय अवश्य आश्चर्य जनक लगता है। और सबसे बड़ी विडंबना यह रही कि गुलजार साहब ने इस आमंत्रण को स्वीकार भी कर लिया था। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने अनुमति ना देकर इलाहाबाद केंद्रीय विश्व विद्यालय की एकेडमिक कौंसीलबौर कार्य परिषद को भी अपमानित किया। विश्व विद्यालय की परिषद को तब तक गुलजार साहब को आमंत्रित नही करना चाहिए था जब तक उनको डीलिट मानद उपाधि देने की औपचारिक स्वीकृत मंत्रालय से नही मिल जाती। इसके साथ ही समाचार पत्रों को भी इसकी सूचना नहीं दी जाती।


पाठक अवश्य जानना चाहेंगे कि शिक्षा मंत्रालय ने ऐसा क्यों किया ? एक व्यक्ति जो बंटवारे का दंश झेला हो और भारत में आकर बसा हो। जिसकी मां और पिता ने बचपन में ही साथ छोड़ दिया हो उसने कितने परिश्रम के साथ इस देश में अपने लिए अति विशिष्ट स्थान बनाया हो वह निश्चित ही कितना योग्य होगा जिसकी लेखनी का लोगो ने लोहा माना। सोचिए एक कार मैकेनिक कवि और लेखक हो और इतना योग्य हो कि सरकार सहित कला के हर क्षेत्र ने उसका सम्मान किया हो , वह कितना अद्भुत व्यक्तित्व का व्यक्ति होगा। मैने इस संबंध में इंटरनेट पर छान बीन की तो 30 दिसंबर 2019 को टाइम्स न्यूज नेट वर्क की एक खबर दिखी कि गुलजार साहब ने एक एवार्ड समारोह में सिर्फ इतना कहा कि उन्हें दिल्ली वालों से डर लगता है कि पता नहीं कब कौन सा कानून ले आएं। उन्होंने सरकार के सी ए ए और एन आर सी कानून से अपनी असहमति भी जताई। शायद सरकार को गुलजार की यह अदा नही भाई । उस समय तो उसने कुछ नही कहा पर मौका आने पर अपनी नाखुशी का इजहार कर दिया। और वह भी उस व्यक्ति पर किया जिसने बंटवारे का दंश झेला हो। यदि वह व्यक्ति जो स्वयं बंटवारे में अपना घर छोड़ कर भारत में आकर बसा हो तो कम से कम उसके एन आर सी और सी ए ए कानून पर की गई टिप्पणी पर ध्यान देने के बजाय सरकार उस पर नाखुशी का इजहार करके क्या यह बताना चाहती है कि सरकार के विरुद्ध असहमति जताने का हक उसको नही है। वह चाहे हिंदू, मुसलमान, सिख , ईसाई या किसी सम्प्रदाय से हो उसे सरकार से असहमति का अधिकार नहीं है। यदि असहमति जताएगा तो सरकार के प्रकोप से नही बच पाएगा। यदि इस सरकार की तरह बाकी सरकारें सोचती तो शायद विरोधी दल इस देश में ही नही होता। संविधान के निर्माताओं ने संविधान बनाते समय तो शायद इसकी परिकल्पना ही नही की होगी कि भारत में एक समय ऐसा भी आ सकता है कि सरकार से असहमति जताने वाले की कोई स्थित ही नही रहेगी चाहे वह कितना भी योग्य क्यों न हो।


पाठको को शायद यह ज्ञात न हो 1991-96 में शिवराज विश्वनाथ पाटिल लोकसभा के स्पीकर थे। उन्होंने आउट स्टैंडिंग एम पी के खिताब से प्रतिवर्ष एक वर्तमान सांसद को चयनित कर उन्हे सम्मानित करने का फैसला 1995 में किया। इसका चयन इंडियन पार्लियामेंट्री ग्रुप के सदस्य करते थे जिसके मेंबर वर्तमान और पूर्व सांसद होते है तथा स्पीकर उसके पड़ें अध्यक्ष होते हैं। इसमें लोक सभा और राज्य सभा के दोनो सदनो के सदस्यों में से चयन होता है। यह खिताब 1991से देने का फैसला लिया गया क्यों कि उस सदन का कार्यकाल 1991 से 1996 तक का था और उसके पहले हकदार कम्युनिस्ट लीडर इंद्रजीत गुप्ता बने जो देवेगौड़ा सरकार में गृह मंत्री रहे। दूसरे हकदार अटल बिहारी बाजपेई बने और तीसरे हकदार चंद्रशेखर बने। उस समय सरकार कांग्रेस की थी और प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव जी थे। यही नहीं जब अटलजी जब प्रधानमंत्री थे तो 2000 में अर्जुन सिंह, 2002 में मनमोहन सिंह और 2003 में शरद पवार इस खिताब से सम्मानित हुए। इसी प्रकार कांग्रेस के शासन काल में 2004 में सुषमा स्वराज, 2008 में मोहन सिंह, 2009 में मुरली मनोहर जोशी और 2010 में अरुण जेटली, 2012 में शरद यादव को इस सम्मान से नवाजा गया। इस सम्मान के चयनकर्ताओं ने कभी भी यह नहीं विचार किया कि अमुक सदस्य किस पार्टी से है। केवल उसकी योग्यता, संसद के कार्यों में उसका योगदान ही मापदंड का पैमाना होता है।

पर अब से भविष्य में क्या मापदंड बनेगा यह तो आने वाले समय में पता चलेगा। भारतीय लोकतंत्र में विरोधी दल के सदस्यों का सदैव सम्मान रहा है। एक बार संयुक्त राष्ट्र संघ की बैठक में पाकिस्तान के मुकाबले भारत ने अपनी बात रखने के लिए जो डेलिगेशन तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिंह राव द्वारा भेजा गया था उसका नेतृत्व अटल जी ने किया था जिसमे राज्य मंत्री सलमान खुर्शीद उसके सदस्य के रूप में गए थे। अटल जी उस समय लोक सभा में विरोधी दल के नेता थे। इसी प्रकार अनेकों बार अटल जी ने कांग्रेस सरकार के समय डेलीगेशन का नेतृत्व किया था। राजीव जी ने भी उनसे डेलिगेशन का नेतृत्व करने का अनुरोध किया था जिसको स्वयं अटल जी ने लिखा था। ऐसा नही था कि अटल जी सरकार की नीतियों का विरोध नही करते थे। वह खूब दृढ़ता के साथ विरोध करते थे पर सरकार को यह विश्वास था कि दुनिया के किसी भी मंच पर जब देश के प्रतिष्ठा पर बात आएगी तो अटल जी ही क्या देश का प्रत्येक सांसद चाहे वह किसी भी दल से संबंधित हो देश हित की ही बात करेगा। यही सोचकर देश के संविधान निर्माताओं ने इस देश के संविधान की रचना की। और इसीलिए जो लोक सभा और राज्य सभा की समितियां बनती हैं उसमे सत्ता पक्ष और विरोध पक्ष के सदस्य और चेयरमैन होते हैं। केंद्रीय विश्व विद्यालय एक ऑटोनॉमस बॉडी होती है इसके एकेडमिक कौसिल और कार्य परिषद के निर्णय का सरकार को सम्मान करना चाहिए था। इस निर्णय से गुलजार साहब का कोई अपमान नही हुआ क्युकी कोई उन्होंने इस खिताब से उन्हे नवाजे जाने की कोई सिफारिश सरकार या विश्व विद्यालय की कार्य परिषद से नही की थी। सरकार के इस निर्णय से उसका ही कद छोटा हुआ है गुलजार साहब का नहीं।

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