PM Modi Strategy: रूस के हमला करते ही यूक्रेन का निकल गया दम….क्या पीएम मोदी का ये भागीरथ प्रयास लाएगा रंग ?

PM Modi Strategy: यूक्रेन का हिस्सा रहे क्रीमिया पर रूस ने साल 2014 में कब्जा कर लिया था। कभी USSR ने ही क्रीमिया को तोहफे के तौर पर यूक्रेन को सौंपा था। कब्जा करने के बाद तनाव बढ़ा जिसके बाद साल 2015 में फ्रांस और जर्मनी ने रूस और यूक्रेन के बीच शांति समझौता करवाया मगर बीते दो सालों से रूस और यूक्रेन की अदावत ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही। अपने तीसरे कार्यकाल में प्रधानमंत्री मोदी पहले रूस गए और फिर यूक्रेन की विजिट कर दोनों देशो के बीच जारी मतभेद और मनभेद दूर करने का प्रयास करते देखे गए। क्या पीएम मोदी का ये भागीरथ प्रयास रंग लाएगा या फिर अपनी पावर पैक्ट फ़ोर्स के नशे में चूर गरम-दिमाग रूस यूक्रेन को यूँ ही दबाता रहेगा । गौरतलब है कि रूस के हमला करते ही यूक्रेन का दम निकल गया होता मगर नाटो और अमरीका की शह ने यूक्रेन को रूस के बराबरी पर लाकर खड़ा कर दिया है । हालात ये है कि न रूस मानने को तैयार है और न यूक्रेन झुकने को नतीजतन पिछले २ साल से ज्यादा वक्त से यूक्रेन और रूस युद्ध की आग में जल रहे है। आइए जानते है कि इसके पीछे कसूरवार कौन है कौन है जो रह-रह कर रूस को भड़का रहा है और यूक्रेन को बर्बाद होने तक युद्ध में झोकने पर आमादा है क्यों दुनिया एक मुल्क के बर्बाद होने का तमाशा देख रही है। आखिर क्यों रूस यूक्रेन से आग बबूला है?

व्लादिमीर पुतिन ने 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़ा करने को यह कहकर सही ठहराया था कि क्रीमिया के लोग “यूक्रेनी” से ज़्यादा “रूसी” हैं, लेकिन इस बयानबाज़ी के पीछे की सच्चाई क्या है?

दरअसल 26 फ़रवरी 2014 को हथियारबंद रूस समर्थकों ने यूक्रेन के क्रीमिया प्रायद्वीप में संसद और सरकारी इमारतों को कब्जे में ले लिया। २ मार्च को रूस की संसद ने भी राष्ट्रपति पुतिन के यूक्रेन में रूसी सेना भेजने के फैसले पर मुहर लगा दी। इसके पीछे तर्क दिया गया कि क्रीमिया में रूसी मूल के लोग मेजोरिटी में हैं जिनके हितों की रक्षा करना रूस की जिम्मेदारी है। दुनिया भर में इस संकट से चिंता छा गई और कई देशों के राजनयिक अमले हरकत में आ गए।

6 मार्च को क्रीमिया की संसद ने रूसी संघ का हिस्सा बनने के पक्ष में मतदान किया जनमत संग्रह के नतीजों को आधार बनाकर 8 मार्च 2014 को क्रीमिया को रूसी फेडरेशन में मिलाने के प्रस्ताव पर रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने दस्खत कर दिए इसके साथ ही क्रीमिया रूसी फेडरेशन का हिस्सा बन गया है। उल्लेखनीय है कि क्रीमिया 18वीं सदी से रूस का हिस्सा रहा है लेकिन 1954 में तब के रूसी नेता ख्रुश्चेव ने यूक्रेन को तोहफे तौर पर क्रीमिया दिया था।

साल 1991 में जब सोवियत संघ बिखर गया साल 1997 में रूस और यूक्रेन के बीच एक एग्रीमेंट हुआ जिसके जरिए यूक्रेन की सीमाएं  तय की गई। लेकिन देश के अलग-अलग इलाकों में कुछ ऐसी खामियां रह गईं जिससे दरारें बनी रही हैं। यूक्रेन के भूगोल को टटोले तो पूर्वी हिस्से के लोगों के रूस के साथ गहरे रिश्ते हैं। यहां रहने वाले लोग रूसी भाषा बोलते हैं और रुढिवादी किस्म के हैं। यूक्रेन के पश्चिमी हिस्से में पश्चिमी देशों का प्रभाव नज़र आता है। पोलैंड और हंगरी का असर दिखता है।

2020 से 2024 तक यूक्रेन के प्रेसिडेंट विक्टर थे जो प्रो-र-शिया थे। यूरोपियन यूनियन ने प्रेसिडेंट विक्टर यूरोपियन फ्री ट्रेड ऑफर किया जिसे विक्टर मना कर दिया। जिस पर यूक्रेन के जबरदस्त प्रोटेस्ट हुए हालात ऐसे हो गए कि प्रेजिडेंट को जान बचाकर रूस भागना पड़ा। ऐसे में यूक्रेन के पास दो ही रास्ते बचे या तो रूस के आगे सरेंडर कर जाए या फिर यूरोपियन यूनियन का दामन थाम ले। ज्यादात्तर यूक्रेनियन रूस को छोड़ यूरोपियन कंट्रीज के फेवर में थे। रूस अकेले नेचुरल गैस का अकेले ३० फीसदी यूरोपियन कंट्रीज को सप्लाई करता है। नेचुरल गैस पाइप लाइन जिस भी देश से होकर गुजरती है उसे उसका रेंट देना पड़ता है। ये पाइपलाइन यूक्रेन से भी होकर गुजरती है २०१३ तक क्योंकि यूक्रेन रूस के हिसाब से चलता था तो रेंट माफ़ था। अब हालत बदले तो रूस ने यूक्रेन पर ३३ बिलियन डॉलर का रेंट फ़ोर्स कर दिया। रूस ये चाहता था कि यूक्रेन यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन ज्वाइन करे मगर यूक्रेन ने मना कर दिया। ऐसे वक़्त में जब डे-बाई-डे यूक्रेन का यूरोप की और झुकाव रूस के लिए परेशानी बढ़ा रहा है। दूसरा यूक्रेन NATO का मेंबर बनने के लिए पुरजोर हाथ-पैर मार रहा है। एस्टोनिया लात्विया पोलैंड के बाद अगर यूक्रेन भी NATO का मेंबर बन जाता तो रूस के बॉर्डर तक अमरीका-NATO की फ़ोर्स पहुंच जाएगी जिसका डर रूस को सता रहा है।

NATO का सदस्य बनने के बाद अगर रूस यूक्रेन पर हमला करता तो ये लड़ाई यूक्रेन की न होकर NATO की होती और तब हालात कुछ और होते। रूस तब यूक्रेन पर हमले की नाफ़रमानी करता भी नहीं ऐसा इसलिए क्योंकि यदि कोई तीसरा देश NATO के सदस्य देश पर हमला करता है तो सभी NATO देश एकजुट होकर उसका मुकाबला करते।

PM Modi Strategy: also read- Jammu: लेफ्टिनेंट जनरल एम वी सुचिंद्र ने राजौरी सेक्टर में नियंत्रण रेखा और भीतरी इलाकों का किया दौरा

कुल मिला कर यूक्रेन खुद को सिक्योर करने के लिए NATO का मेंबर बनने पर तुला है जबकि यूरोपियन कंट्रीज़ और अमरीका कमांड अपने हाथ में लेने पर आमादा है। शह और मात के इस खेल में यूक्रेन महज एक मोहरा बन के रह गया है।

Related Articles

Back to top button