Kaliganj by-election: पहचान, राष्ट्रवाद और विरासत के बीच राजनीतिक संग्राम

Kaliganj by-election: पश्चिम बंगाल की कालीगंज विधानसभा सीट पर आगामी उपचुनाव एक बहुकोणीय राजनीतिक संघर्ष का रूप ले चुका है। यह चुनाव न केवल सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस-वाम गठबंधन के बीच शक्ति प्रदर्शन का मंच बनेगा, बल्कि यह राज्य की भावी राजनीतिक दिशा की भी झलक देगा। मतदान 19 जून को और मतगणना 23 जून को प्रस्तावित है।

यह उपचुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब क्षेत्र में पहचान की राजनीति, राष्ट्रवादी भावनाएं और पारिवारिक विरासत जैसे मुद्दे आम मतदाता की सोच को गहराई से प्रभावित कर रहे हैं। इसके साथ ही, हालिया सैन्य कार्रवाई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ ने राजनीतिक विमर्श में राष्ट्रवाद को एक बार फिर प्रमुखता से ला दिया है।

भाजपा: राष्ट्रवाद और शासन के मुद्दे पर आक्रामक

यह उपचुनाव भाजपा विधायक नसीरुद्दीन अहमद के निधन के कारण हो रहा है। भाजपा ने उनकी बेटी, 38 वर्षीय बीटेक डिग्रीधारी और कॉर्पोरेट क्षेत्र से जुड़ी अलिफा अहमद को उम्मीदवार बनाया है। वे अपने पिता की राजनीतिक विरासत को आगे ले जाने के वादे के साथ चुनावी मैदान में उतरी हैं।

अलिफा ने कहा, “पिता के अधूरे सपनों को साकार करना अब मेरा उद्देश्य है। कालीगंज की जनता और ममता बनर्जी के आशीर्वाद से मैंने यह नई राह चुनी है।”

दूसरी ओर, भाजपा ने स्थानीय नेता और पूर्व मंडल अध्यक्ष आशीष घोष को अपना प्रत्याशी घोषित किया है। प्रदेश अध्यक्ष सुकांत मजूमदार ने उन्हें “जमीनी कार्यकर्ता” बताते हुए कहा कि वे “तृणमूल के कुशासन” को चुनौती देने के लिए उपयुक्त उम्मीदवार हैं।

भाजपा अपने चुनाव प्रचार में ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और राष्ट्रीय सुरक्षा को प्रमुख मुद्दा बना रही है, विशेष रूप से मुस्लिम बहुल इस क्षेत्र में राष्ट्रवादी भावना को साधने की रणनीति अपनाई जा रही है।

तृणमूल: विरासत और विकास का संतुलन

तृणमूल कांग्रेस इस चुनाव को एक “विकास बनाम विभाजन” की लड़ाई के रूप में पेश कर रही है। अलिफा अहमद को उम्मीदवार बनाकर पार्टी ने एक ओर संवेदनशील सहानुभूति और पारिवारिक विरासत को जोड़ा है, वहीं दूसरी ओर भाजपा पर समुदायों के बीच नफरत फैलाने का आरोप लगाया है।

अलिफा ने कहा, “भाजपा की राजनीति नफरत की बुनियाद पर टिकी है, लेकिन कालीगंज की जनता हमेशा से सौहार्द की पक्षधर रही है।”

कांग्रेस-वाम: एकजुटता के भरोसे

कांग्रेस-वाम गठबंधन ने काबिल उद्दीन शेख को उम्मीदवार बनाया है। माकपा, जिसने 2023 के पंचायत और 2024 के लोकसभा चुनावों में कालीगंज में उल्लेखनीय प्रदर्शन किया था, ने सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी। गठबंधन का मानना है कि एकजुटता से तृणमूल और भाजपा दोनों को मात दी जा सकती है।

माकपा के राज्य सचिव मोहम्मद सलीम ने कहा, “हमारा लक्ष्य पहचान की राजनीति के बजाय वर्ग आधारित न्याय और शासन को केंद्र में लाना है।”

सांप्रदायिक तनाव और मतदाता संरचना

हालिया मुर्शिदाबाद दंगों की पृष्ठभूमि में यह चुनाव हो रहा है, जिसमें तीन लोगों की जान गई और कई परिवार विस्थापित हुए। इससे सांप्रदायिक तनाव का प्रभाव मतदाता व्यवहार पर पड़ना तय है। कालीगंज सीट पर लगभग 54% मुस्लिम, 14.43% अनुसूचित जाति और 0.42% अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं, जिससे पहचान आधारित राजनीति की भूमिका बेहद निर्णायक बन जाती है।

अतीत का संकेत, भविष्य की झलक

इतिहास बताता है कि कालीगंज सीट सत्ता परिवर्तन का संकेत देने वाली सीट रही है। यह सीट वाम शासन में आरएसपी के पास रही, फिर कांग्रेस ने तीन बार जीत दर्ज की। 2011 में तृणमूल ने इसे जीता, 2016 में कांग्रेस-वाम गठबंधन को सफलता मिली, लेकिन बाद में विधायक तृणमूल में शामिल हो गए। 2021 में तृणमूल ने 54% वोट हासिल कर फिर से इसे अपने पाले में कर लिया।

एक चुनाव, कई संदेश

राजनीतिक विश्लेषक मैदुल इस्लाम के अनुसार, यह चुनाव राज्य में पहचान की राजनीति की तीव्रता को दर्शाता है। भाजपा राष्ट्रवाद के सहारे जीत की राह तलाश रही है, जबकि तृणमूल राज्य के विकास और सामाजिक समरसता की बात कर रही है। वहीं, वाम-कांग्रेस गठबंधन वर्गीय मुद्दों और वैकल्पिक राजनीति को पुनर्जीवित करने की कोशिश में है।

मतदान के दौरान किसी प्रकार की अप्रिय घटना से बचने के लिए चुनाव आयोग ने केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (CAPF) की 20 कंपनियों की तैनाती का फैसला किया है।

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यह उपचुनाव न केवल एक सीट का भविष्य तय करेगा, बल्कि यह 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों की राजनीतिक पटकथा की भूमिका भी लिख सकता है।

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