Sonbhadra News-सोनभद्र और सिंगरौली परिक्षेत्र में प्रदूषण रोकने छेड़ी जंग
Sonbhadra News-एकला चलो एकला चलो की गीत नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कवि रवींद्रनाथ टैगोर ने उस दौर में लिखा था जब हमारा देश आजादी के लिए अंगड़ाइयां लेने लगा था। आजादी के बाद भी गुरु टैगोर का लिखा हुआ यह गीत लोगों के जुबान पर है। यह गीत अकेले चलकर संघर्ष कर रहे सिंगरौली और सोनभद्र के पर्यावरण कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा पर फिट बैठता है। जिसने प्रदूषण के खिलाफ एनजीटी में मुकदमा दायर कर प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ जंग छेड़ रखी है और देश के सर्वोच्च अस्पताल एम्स जैसे एवं आईआईटी प्रोफेसर को सिगरौली एवं सोनभद्र के दक्षिणांचल की भयावह स्थिति की जांच पड़ताल के लिए आने का आदेश दिलाकर इन दिनों राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा मे है। छत्तीसगढ़ सीमावर्ती म्योरपुर ब्लॉक क्षेत्र के ग्राम पंचायत फरीपान निवासी एक गरीब परिवार में जन्मे जगत नारायण विश्वकर्मा कभी जूनियर की फीस भरने के लिए गांव में मजदूरी एवं मई और जून के महीने में तेंदूपत्ता तोड़ने का कार्य करते थे।आगे की पढ़ाई ट्यूशन और अखबार बेचकर पूरा करने वाले पर्यावरण कार्यकर्ता श्री विश्वकर्मा सिंगरौली जोन में फैले प्रदूषण की रोकथाम के लिए अकेले लड़ाई लड़ने का कई बार कार्य किया और सफलता भी पाई। श्री विश्वकर्मा वर्ष 2012 में दीपावली के दिन जब पांगन नदी पर सांकेतिक अनशन पर बैठ गए,और किसी को यकीन नहीं हो रहा था कि खनन माफिया के साथ सफेद पोस और पुलिस की मिली भगत के खेल में अनशन का कोई असर दिखेगा लेकिन इसका ऐसा असर दिखा कि खनन माफिया ने घुटने टेक दिए और पागन नदी में अवैध खनन रुक गया। और इसके बाद आज तक किसी ने इधर झांकने की कोशिश तक नहीं की। जगत नारायण विश्वकर्मा द्वारा क्षेत्र के उद्योगों के द्वारा फैलाए जा रहे हैं प्रदूषण के विरुद्ध एनजीटी में दरवाजा खटखटाने के पूर्व दिल्ली के मीडिया को भी यहां की फैलते प्रदूषण को लेकर अवगत कराया था।मसलन बीबीसी, तहलका, डॉउन टू अर्थ, एनडीटीवी पर प्रदूषण की समस्या छाई, तो लोगों का ध्यान सिंगरौली जोन के प्रदूषण की तरफ गया और आज परिणाम सबके सामने है। श्री विश्वकर्मा ने कहा कि समाज में चुनौतियों भरा काम सब करना चाहते हैं लेकिन आगे कोई नहीं आना चाहता। जबकि ऐसे मामलों में एक कदम बढ़ाइए तो और दस कदम बढ़ने का साथ मिल जाता है।
कुछ यूं ही कटता है दिल्ली तक का सफर
एनजीटी में मुकदमा करने वाले जगत नारायण विश्वकर्मा दो सेट कपड़ों में विश्वास रखते हैं एक पहना और दूसरा धूल कर सूखने के लिए फैला दिया। दिल्ली जाने के लिए ट्रेन मे आरछित टिकट नहीं मिला तो जनरल बोगी में नीचे अखबार बिछाकर बैठकर एवं लेटकर दिल्ली तक का सफर यूं ही तय किया। लेकिन जनहित के मुद्दों पर पर्यावरण कार्यकर्ता जगत नारायण विश्वकर्मा हमेशा तटस्थ रहते हैं।
बलिया नाला की स्थिति को भी गंभीर रहे पर्यावरण कार्यकर्ता
राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखने वाले जगत नारायण विश्वकर्मा ने दुद्धीचुआ के बलियानाला मे कोयला युक्त पानी के बहाव को लेकर कई बार पर्यावरण वैज्ञानिक और एनजीटी की टीम को यहां का दौरा कराकर इसके निष्कर्ष की बात रखी है।
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