SP-Congress alliance -उत्तरप्रदेश में 2017 के बाद फिर आई अखिलेश-राहुल की जोड़ी – हिट होगी या 2024 में भी होगा वही पुराना हाल?
SP-Congress alliance -लोकसभा चुनाव 2024 के लिए उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन हो चुका है। इसके साथ ये भी तय गया कि कांग्रेस राज्य की 17 सीटों पर और बची हुई सीटों पर सपा (इंडिया के अन्य सहयोगी दल) अपने उम्मीदवार उतारेगी। देश की सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले राज्य में इन दोनों पार्टियों के साथ आने से इंडिया गठबंधन को कितनी मजबूती मिलेगी, यह चुनाव नतीजों के बाद ही पता चलेगा।इससे पहले साल 2017 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा प्रमुख अखिलेश यादव और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने साथ मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन उस चुनाव के नतीजे दोनों ही पार्टियों के मनमुताबिक नहीं रहा।
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साल 2017 में समाजवादी पार्टी ने विधानसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ गठबंधन किया था। इस चुनाव में राज्य की 430 सीटों में से सपा-कांग्रेस गठबंधन सिर्फ 54 सीटों पर जीत दर्ज कर सका था। साल 2017 में जब दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ था, उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे। जब इन दोनों पार्टियों का गठबंधन हुआ तो कार्यकर्ताओं ने नारा दिया था कि उत्तरप्रदेश को ये साथ पसंद है। हालांकि, 2017 के विधानसभा चुनाव नतीजों के आने के बाद सपा और कांग्रेस अलग हो गई। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को पटखनी देने के लिए उत्तरप्रदेश में इस बार सपा और बहुजन समाज पार्टी ने गठबंधन किया। लोकसभा चुनाव 2019 में दोनों ही पार्टियों ने लगभग बराबर सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन इस गठबंधन का फायदा जितना मायावती की पार्टी को मिला उतना समाजवादी पार्टी को नहीं मिला। लोकसभा चुनाव 2019 में बसपा ने 10 सीटों तो सपा ने सिर्फ 5 सीटों पर जीत दर्ज की थी।
गौरतलब है कि उत्तरप्रदेश में 80 सीटों को लेकर हुई डील के तहत कांग्रेस 17 सीटों पर चुनाव लड़ेगी। सपा 63 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारेगी। सपा अपने कोटे से कुछ छोटे दलों को भी सीटें दे सकती है। अखिलेश यादव ने चुनाव मेंएन डी ए को हराने के लिए पी डी ए का फॉर्मूला दिया था। पी डी ए यानी पिछड़ा वर्ग, दलित और अल्पसंख्यक। समाजवादी पार्टी ने लोकसभा उम्मीदवारों की लिस्ट में ‘पी डी ए ‘ पर दांव लगाया है। सपा की उम्मीदवारों की लिस्ट में ओ बी सी , दलित और मुस्लिम प्रत्याशी शामिल है। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी कई मौकों पर चार जातियों की बात कर चुके हैं। जातिगत राजनीति को लेकर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि उनके लिए 4 जातियां अहम हैं-नारी शक्ति, युवा शक्ति, किसान और गरीब परिवार। ऐसे में सवाल ये है कि उत्तरप्रदेश में कांग्रेस का साथ पाने के बाद अखिलेश यादव का पी डी ए प्रधानमंत्री मोदी की 4 जातियों के आगे कितना टिक पाएगा?
SP-Congress alliance -अखिलेश ने जब पहली बार पी डी ए का जिक्र किया तो पार्टी के अपर कास्ट नेताओं ने आशंका जताई कि उससे ऊंची जातियों में गलत मैसेज जा सकता है। इसके बाद अखिलेश यादव ने पी डी ए के A से अगड़े, आदिवासी और आधी आबादी (महिलाओं) का जिक्र भी किया। दूसरी ओर मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ का चुनाव जीतने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी स्पीच में चार जातियों का जिक्र किया और बड़ा दांव खेल दिया था।
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, उत्तरप्रदेश में ओ बी सी जातियों की आबादी करीब 43.1% है। 2011 में हुई जनगणना के मुताबिक उत्तरप्रदेश में मुस्लिमों की आबादी करीब 19% है। दलितों की आबादी करीब 23% है। ऐसे में सवाल उठता है कि पी डी ए को साधने के लिए अखिलेश यादव क्या कर रहे हैं? बताया जाता है कि समाजवादी लोहिया वाहिनी ने पिछले साल 9 अगस्त से 22 नवंबर तक राज्य के 29 जिलों में पी डी ए यात्रा निकाली। अखिलेश यादव भी साइकिल से इस यात्रा में शामिल हुए। कार्यकर्ताओं ने इस दौरान करीब 6 हजार किलोमीटर का एरिया कवर किया। इसके अलावा सपा ने पी डी ए पखवाड़ा, चौपाल, जन पंचायतें भी आयोजित कीं। इन कार्यक्रमों का मकसद अल्पसंख्यकों, दलितों और ओबीसी को एकजुट करना था।
दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी भी अपनी बताई 4 जातियों के लिए काम करने पर फोकस कर रहे हैं। भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में प्रधानमंत्री मोदी इसकी रूपरेखा भी बताई। मोदी ने कहा, “अगर हमारी योजनाएं गरीब, युवा, किसान और महिलाओं तक सही तरीक़े से पहुंच जाएंगी तो, इससे हमें वोट बढ़ाने में काफी मदद मिलेगी। इसके लिए जिन राज्यों में भारत विकसित यात्राएं निकल रही हैं उन पर फ़ोकस किया जाए।”
प्रधानमंत्री मोदी ने कार्यकर्ताओं को कहा, “चार जातियों पर काम करें। गरीब, किसान, युवा और महिला। ज्यादा खेल कूद प्रतियोगिता कराएं ताकि उनसे और तार जुड़ें। सारे कार्य अब मिशन मोड में करें। सोशल मीडिया कैम्पेन में आक्रामक रहें।”
ध्यान रहे कि अखिलेश की समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के गठबंधन का मुकाबला उस एन डी ए से है, जिसके नेता खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं। प्रधानमंत्री मोदी ने उत्तरप्रदेश को साधने के लिए अपनी चार जातियों दलित, किसान, गरीब, युवा वाला फॉर्मूला बहुत पहले ही उछाल दिया है।
2019 के चुनाव मेंएन डी ए में भाजपा को 49।6 फीसदी वोट मिले थे, जबकि अपना दल को 1.2% मिले। यानीएन डी ए को 50.8% वोट हासिल हुए। दूसरी तरफ महागठबंधन में शामिल समाजवादी पार्टी को 18% वोट मिले थे, बसपा को 19.3% और राष्ट्रीय लोकदल को 1.7% वोट मिले। यानी समूचे गठबंधन को 39% हासिल हुए। वहीं, यू पी ए में कांग्रेस को 6.3% वोट हासिल हुए।
अब बदले हालात में गठबंधनों का चरित्र बदल गया है। पिछले चुनाव के आधार पर मौजूदा गठबंधन का वोट जोड़ें, तोएन डी ए में BJP, अपना दल और संभावित तौर परएन डी ए में शामिल होने जा रही आर एल डी के वोट जोड़कर 52.5% हो जाते हैं। जबकि दूसरी तरफ इंडिया गठबंधन में शामिल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के वोट जोडकर 24.3% होते हैं। यानी एन डी ए पिछले चुनावों के आधार पर इंडिया गठबंधन की तुलना में दोगुना से भी ज्यादा मजबूत दिखती है।
SP-Congress alliance -2019 के चुनाव मेंउत्तरप्रदेश में में पड़े वोटों में भाजपा – 49.6%,अपना दल- 1.2% यानी एन डी ए – 50,8%,सपा- 18% बसपा – 19.3%, आर एल डी – 1.7% यानी महागठबंधन- 39% ,कांग्रेस- 6.3% यानी यू पी ए – 6.3% इसीलिए पिछले चुनावों का समीकरण तो विपक्ष के लिए अच्छी तस्वीर पेश नहीं करता। बावजूद इसके अखिलेश यादव अपने पी डी ए यानी ‘पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक’ की हांक लगाकर बड़े वोट बैंक को साधने की कोशिश कर रहे हैं। दूसरी ओर, राहुल गांधी भी तकरीबन हर मंच से 73% आबादी (पिछड़े, दलित और अल्पसंख्यक) के हित और हक की बात कर रहे हैं।
एक बड़ी आबादी को साधने की राहुल गांधी और अखिलेश याद के प्रयासों के बावजूद माहौल भाजपा के पक्ष में ज्यादा दिखता है। क्योंकि भाजपा के पास अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण से बना माहौल है। दूसरी ओर, प्रधानमंत्री मोदी की राष्ट्रीय छवि भाजपा को फायदा पहुंचाती है। वहीं, उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की छवि हिंदुत्व के रक्षक नेता की है, जिसका लाभ भी मिलना तय है। यहांएन डी ए ने छोटे दलों को साधकर अपनी ताकत मजबूत कर ली है।इसके पलट विपक्ष अपने घर में मचे भगगड़ से त्रस्त है। वहां हफ्ते भर में चार-चार झटके लगे। चौधरी चरण सिंह को मोदी सरकार ने ‘भारत रत्न’ दे दिया, तो उनके पोते और आर एल डी चीफ जयंत चौधरी ने अखिलेश से गठबंधन तोड़ने का पूरा मन बना लिया। हालांकि, अभी भाजपा -आर एल डी या सपा तीनों में से किसी ने ऑफिशियल अनाउंसमेंट नहीं किया है।
दूसरी ओर, समाजवादी पार्टी को स्वामी प्रसाद मौर्य ने भी झटका दिया है। अखिलेश यादव के साथ मनमुटाव के बाद स्वामी ने RSSP नाम से अलग पार्टी बना ली है। वैसे राष्ट्रीय शोषित समाज पार्टी (RSSP) साहेब सिंह धनगर की है। स्वामी प्रसाद मौर्य ने इसे री-लॉन्च किया है। इसके अलावा पल्लवी पटेल भी जया बच्चन को राज्यसभा में भेजे जाने से घनघोर नाराज हैं। और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के पोते विभाकर शास्त्री कांग्रेस छोड़कर भाजपा में चले गए हैं।इन सबमें सबसे बड़ी दिक्कत कांग्रेस के साथ है। चुनाव दर चुनाव उसकी हार की खाई और चौड़ी होती जा रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने उत्तरप्रदेश की 67 सीटों पर चुनाव लड़ा। इसमें से सिर्फ एक सीट (रायबरेली) जीती थी। 3 सीटों पर कांग्रेस दूसरे नंबर, 58 सीटों पर तीसरे नंबर, 4 सीटों पर चौथे नंबर और एक सीट पर पांचवें नंबर पर रही। जबकि, समाजवादी पार्टी ने 37 सीटों पर चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीती। 31 सीटों पर सपा दूसरे नंबर पर और एक सीट पर तीसरे नंबर पर रही। लिहाजा, सिर्फ कांग्रेस और अखिलेश का गठबंधन ही इन दोनों पार्टियों के खुश होने का सबब नहीं हो सकता।
बताया जाता है कि उत्तरप्रदेश के जिन सीटों पर कांग्रेस लोकसभा चुनाव 2024 में अपने उम्मेदवार उतारेगी उसमें रायबरेली, अमेठी, कानपुर नगर, फतेहपुर सिकरी, बांसगांव, सहारणपुर, प्रयागराज, महराजगंज, वाराणसी, अमरोहा, झांसी, बुलंदशहर, गाजियाबाद, मथुरा, सीतापुर, बाराबंकी, देवरिया शामिल है। इस गठबंधन का फायदा या नुकसान किसे होगा, इसका फैसले 2024 लोकसभा चुनाव के नतीजे ही करेंगे।