मानसून सत्र : पक्ष-विपक्ष नहीं हुए सहमत तो अगले सप्ताह भी होंगे कामकाज प्रभावित

नई दिल्ली : संसद के मानसून सत्र का पहला सप्ताह हंगामे की भेंट चढ़ गया. खाद्य पदार्थों पर लगाए गए जीएसटी और महंगाई को लेकर विपक्षी दलों के लगातार हंगामे के कारण मानसून सत्र के पहले सप्ताह में बहुत कम कामकाज हो पाया. सोमवार, 18 जुलाई को संसद के दोनों सदनोंलोक सभा और राज्य सभा की कार्यवाही शुरू होते ही कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने जीएसटी और महंगाई पर तुरंत चर्चा कराने की मांग को लेकर हंगामा करना शुरू कर दिया.

मंगलवार और बुधवार को भी विपक्षी दलों के हंगामे की वजह से कोई कामकाज नहीं हो पाया. कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के खिलाफ कांग्रेस के सांसदों ने गुरुवार को दोनों सदनों में जमकर हंगामा किया, वहीं अन्य विपक्षी दल इस दिन भी जीएसटी और महंगाई का मुद्दा उठाते रहे. सरकार और विपक्ष के रवैये को देखते हुए संसद के मानसून सत्र के दूसरे सप्ताह के दौरान भी सदन में कामकाज हो पाने की संभावना पर फिलहाल ग्रहण लगा हुआ ही नजर आ रहा है.

सदन में लगातार हंगामे के कारण, राज्य सभा में पहले तीन दिनों के दौरान केवल एक घंटे 16 मिनट ही कामकाज हो पाया. चौथे और पांचवें दिन राज्य सभा में 5 घंटे 31 मिनट कामकाज हुआ. हंगामे और बार-बार स्थगन की वजह से राज्य सभा को 18 घंटे 44 मिनट के कामकाज का नुकसान झेलना पड़ा. मानसून सत्र के पहले सप्ताह के दौरान राज्य सभा में केवल 27 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया.

राज्य सभा के मुकाबले लोक सभा में कामकाज का प्रतिशत और भी ज्यादा कम रहा. संसद के मानसून सत्र के पहले दिन सोमवार को लोक सभा में केवल 10 प्रतिशत कामकाज ही हो पाया जो मंगलवार को घटकर महज 8 प्रतिशत रह गया. बुधवार को सदन में 15 प्रतिशत कामकाज हुआ. गुरुवार को सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ के खिलाफ प्रश्नकाल के दौरान जबरदस्त हंगामा कर सदन को एक बार स्थगित कराने के बाद कांग्रेस सांसद प्रदर्शन करने के लिए ईडी दफ्तर रवाना हो गए और अन्य विपक्षी दलों ने सरकार पर उनकी बात नहीं सुनने का आरोप लगाते हुए सदन से वॉकआउट कर दिया. इसलिए इस सप्ताह के दौरान सबसे ज्यादा 30 प्रतिशत कामकाज गुरुवार, 21 जुलाई को ही हो पाया. इसके अगले दिन शुक्रवार को भी सदन में केवल 17 प्रतिशत ही कामकाज हुआ. कुल मिलाकर देखा जाए तो मानसून सत्र के पहले सप्ताह के दौरान लोक सभा में औसतन केवल 16 प्रतिशत ही कामकाज हो पाया.

दरअसल, विपक्ष के ज्यादातर दल खाद्य पदार्थों पर लगाए गए जीएसटी और महंगाई पर सदन में तुरंत चर्चा करना चाहते हैं लेकिन सरकार की तरफ से यह दलील दी जा रही है कि इस चर्चा के दौरान सांसदों के विचार को जानने और सरकार की तरफ से जवाब देने के लिए वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की मौजूदगी जरूरी है. निर्मला सीतारमण के कोविड से स्वस्थ होकर वापस लौटते ही राज्य सभा में सभापति और लोक सभा में स्पीकर की अनुमति से कार्य मंत्रणा समिति में निर्धारित समय पर सरकार इन मुद्दों पर चर्चा कराने को तैयार हैं. सरकार का यह भी कहना है कि विपक्षी दल शून्यकाल के दौरान भी अपने मुद्दों को उठा सकते हैं. लेकिन सत्र के पहले सप्ताह के दौरान सदन में कामकाज के रिकॉर्ड से यह साफ जाहिर हो रहा है कि विपक्ष सरकार के तर्क से सहमत नहीं है और ऐसे में अगर दोनों ही पक्ष अपने-अपने रूख पर अडिग रहे तो 25 जुलाई से शुरू होने वाले सत्र के दूसरे सप्ताह के दौरान भी संसद में कामकाज प्रभावित होने की संभावना है. हालांकि बताया जा रहा है कि दोनों सदनों में सरकार और विपक्ष को एक पेज पर लाने की कोशिश भी लगातार की जा रही है ताकि दोनों सदनों की कार्यवाही सुचारू रूप से चल सके.

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