Bihar Election 2025 : तेजस्वी यादव कहां चूक गए, अब आरजेडी की राह क्या’, बिहार में खराब प्रदर्शन ने खड़ा कर दिया बड़ा सवाल

Bihar Election 2025 : बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में आरजेडी के खराब प्रदर्शन ने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया है कि तेजस्वी यादव आखिर कहां चूक गए और अब पार्टी की राह क्या होगी। चुनाव प्रचार के दौरान ही यह संकेत मिलने लगे थे कि तेजस्वी इस बार 2020 वाला जोश नहीं दिखा पाए। 2020 में जहां उन्होंने 200 से अधिक रैलियों को संबोधित किया था, वहीं इस बार उनकी रैलियां 100 के अंदर ही सिमट गईं। मौसम खराब होने पर तेजस्वी और तेज प्रताप दोनों की कई रैलियाँ रद्द हो गईं, लेकिन 74 वर्षीय नीतीश कुमार ने हेलिकॉप्टर के बजाय सड़क मार्ग से पहुंचकर लगातार प्रचार जारी रखा।

चुनावी नतीजों में इसका असर दिखा। तेजस्वी यादव अपनी सीट राघोपुर से अंत में जरूर जीते, लेकिन बीजेपी के सतीश कुमार ने उन्हें कड़ी चुनौती दी। तेज प्रताप तो महुआ में तीसरे स्थान पर चले गए। आरजेडी का कुल सीटों का आंकड़ा भी 2010 जैसी स्थिति में पहुंच गया।

विश्लेषकों का मानना है कि आरजेडी का सामाजिक समीकरण इस बार पहले जैसा मज़बूत नहीं दिखा। पार्टी नेताओं का मानना है कि यादव वोट बैंक में भी एकजुटता कम हुई है। वे दानापुर, राघोपुर और सीमांचल के उदाहरण देते हुए कहते हैं कि अगर यादव पूरी ताकत से आरजेडी के साथ होते, तो कई सीटों पर नतीजे अलग होते। उनकी राय में मुस्लिम वोट भी अब पूरी तरह आरजेडी के पास नहीं रहा। ओवैसी की पार्टी की जीत और हिना शहाब जैसे उम्मीदवारों को मिले बड़े वोट इसका संकेत हैं।

लालू यादव की सेहत और सक्रिय राजनीति से दूरी ने भी पार्टी को प्रभावित किया है। 77 वर्षीय लालू यादव इस साल जून में 13वीं बार आरजेडी के राष्ट्रीय अध्यक्ष चुने गए, लेकिन उनकी विरासत अब एक दोधारी तलवार बन चुकी है। वरिष्ठ पत्रकारों ने बताया कि लालू का एम-वाई समीकरण तेजस्वी के लिए ताकत है, लेकिन 90 के दशक की खराब कानून व्यवस्था की यादें आज भी चुनावों में आरजेडी के खिलाफ नैरेटिव खड़ा कर देती हैं।

इसके अलावा तेजस्वी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों में ट्रायल 4 दिसंबर से शुरू होना है। परिवार के भीतर राजनीतिक खींचतान भी चुनौती बनी हुई है। राजनीतिक जानकारों का आरोप है कि तेजस्वी ने पार्टी को वन मैन शो में बदल दिया है, जिससे संगठनात्मक विस्तार कमजोर हुआ है।

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राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि आरजेडी नए मतदाता नहीं जोड़ पा रही है। एनडीए के साथ लगभग सभी जातीय समूह हैं, जबकि आरजेडी की राजनीति अभी भी सीमित आधार पर टिकी है। उनकी राय में तेजस्वी के वादों – जैसे हर परिवार से एक सदस्य को सरकारी नौकरी पर जनता ने विश्वास नहीं किया। इसके उलट एनडीए सरकार ने स्कीम वर्करों की तनख्वाह दोगुनी करने और लाखों महिलाओं को सीधा आर्थिक लाभ पहुंचाकर ठोस संदेश दिया।

वह कहते हैं कि यादवों का एक बड़ा वर्ग अब हिन्दुत्व की राजनीति से भी प्रभावित हो रहा है। यदि आरजेडी ने समय रहते अपनी रणनीति नहीं बदली, तो वह अपना पारंपरिक वोट बैंक भी खो सकती है।

कुल मिलाकर आरजेडी के सामने चुनौती सिर्फ चुनावी नहीं, वैचारिक और संगठनात्मक भी है। तेजस्वी यादव को अपने पिता की राजनीति की छाया से बाहर निकलकर आधुनिक बिहार के अनुरूप नई दिशा तय करनी होगी, वरना पार्टी का भविष्य और मुश्किल होता जाएगा।

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