अनुदेशक शिक्षक मामला :कोर्ट ने 3 सप्ताह के अंदर सरकार से मांगा जवाब


उत्तर प्रदेश के सरकारी विद्यालयों में अनुदेशक शिक्षक के रूप में नौकरी करने वाले सैकड़ों अनुदेशक शिक्षकों ने कोर्ट के फैसले पर खुशी जताई है। पिछले सात सालों से अल्प मानदेय पर कर रहे है नौकरी, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसला देते हुए यूपी के सरकारी स्कूल में नियुक्त अनुदेशकों को 7 हजार रुपये मानदेय देने के मुद्दे पर राज्य सरकार से 3 हफ्ते में जवाब मांगा है।

कोर्ट ने अनुदेशकों का मानदेय चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के न्यूनतम वेतन से भी कम होने के विषय पर सरकार से जवाब तलब किया है। यह आदेश न्यायमूर्ति पंकज भाटिया ने प्रभु शंकर व अन्य की याचिका पर दिया है। याची का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 21-ए के तहत केंद्र सरकार ने अनिवार्य शिक्षा कानून बनाया। शिक्षकों की जरूरत पूरी करने के लिए मानदेय पर 11 माह के लिए नवीनीकृत करने की शर्त के साथ अनुदेशकों की नियुक्ति की व्यवस्था की गयी। कला, स्वास्थ्य, शारीरिक कार्य शिक्षा देने के लिए 41307 अनुदेशकों के पद सृजित किये गये। इन्हें भरने के लिए विज्ञापन निकाला गया। याचियों की 2013 में नियुक्ति हुई।

2015 में फिर इनका मानदेय बढ़ाकर 8470 रुपए कर दिया गया उसके बाद 2017 में केंद्र सरकार द्वारा अनुदेशक शिक्षकों का मानदेय बढ़ाकर ₹17000 कर दिया गया किंतु उत्तर प्रदेश सरकार ने 17000 देने की जगह मिल रहे मानदेय 8470 को घटाकर वापस 7000 कर दिया। अपने अल्प मानदेय में अनुदेशकों का गुजारा नहीं हो पा रहा है। सरकार के इस फैसले के खिलाफ अनुदेशक कोर्ट पहुंचे जहां पर सिंगल बेंच के द्वारा 17000 मानदेय देने का आदेश दिया जा चुका है किंतु अभी तक सरकार कोर्ट के फैसले को भी अनसुना कर रही है। जिस पर सुनवाई करते हुए है।संगठन के जिला अध्यक्ष शशांक मिश्रा ने बताया कि कोर्ट के इस फैसले से अनुदेशक शिक्षकों में उम्मीद की किरण फिर से जगी है। क्योंकि इतने कम  मानदेय में सभी को अपनी जिंदगी में अंधेरा ही नजर आ रहा है इतनी महंगाई में ना तो खुद का खर्चा सकता है ना परिवार का।

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