देश की आधी आबादी को न्याय मिलने की उम्मीद जगी

महिला आरक्षण बिल पर जिस तरह प्रतिक्रियाएं आईं हैं उससे आम राय से इसके पारित होने की उम्मीद जगी है।

इस बात की लगातार संभावना जताई जा रही थी कि सरकार कहीं ना कहीं इस विशेष सत्र में कोई बड़ा  कदम उठा सकती है। अब  यह सही साबित होता दिखाई दिया रहा है। महिला आरक्षण विधेयक को लेकर लगातार मांग उठाई जा रही थी। अगले साल लोकसभा चुनाव को लेकर इसे काफी अहम माना जा रहा है। बिल को मंजूरी मिलने के बाद इसे लोकसभा में पेश किया जाएगा। इस विधेयक में लोकसभा और विधानसभा की 33 फ़ीसदी यानी कि एक तिहाई सेट को आरक्षित करने का प्रस्ताव है।  इस विधेयक को लेकर लगातार राजनीतिक चर्चाएं तो जारी रहती ही है। यह विधेयक पिछले 27 सालों से पेंडिंग था। इस विधेयक पर आखिरी बार 2010 में कदम उठाया गया था। विधायक को मंजूरी मिलने के बाद केंद्रीय मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल ने लिखा कि महिला आरक्षण की मांग को पूरा करने का नैतिक साहस मोदी सरकार में ही था।

वहीं इससे पहले रविवार को हुई सर्वदलीय बैठक के दौरान कुछ क्षेत्रीय दलों और कांग्रेस सांसदों ने इस विधेयक को संसद में पारित करने की मांग की थी। हालांकि, सरकार ने उनकी मांग पर कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी थी ।

महिला आरक्षण बिल पर जिस तरह प्रतिक्रियाएं आईं हैं उससे आम राय से इसके पारित होने की उम्मीद जगी है। कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश ने एक्स पर पोस्ट में लिखा, बिल को कैबिनेट से मंजूरी मिलने की खबर का हम स्वागत करते हैं। हालांकि इस पर इतनी गोपनीयता बरतने के बदले संसद के विशेष सत्र से पहले सर्वदलीय बैठक में अच्छी चर्चा और आम राय बनाने की जरूरत थी।रमेश ने कहा कि कांग्रेस कार्यसमिति ने हैदराबाद में अपनी बैठक में इसी सत्र में महिला आरक्षण विधेयक पारित कराने की मांग की थी। कांग्रेस की ओर से नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने खुद राज्यसभा में यह मांग उठाई थी । खरगे ने कहा था  कि संसद के दोनों सदनों में महिला जनप्रतिनिधियों की संख्या सिर्फ 14 फीसदी है जबकि विधानसभा में यह संख्या महज 10 फीसदी है। ऐसे में विधायिका में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण लागू किया जाना चाहिए।


भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) की एमएलसी के. कविता ने महिला आरक्षण विधेयक को मंजूरी देने के केंद्रीय मंत्रिमंडल के फैसले का स्वागत किया है। कविता ने कहा, मैं उत्साहित हूं, मैं बहुत खुश हूं, लेकिन थोड़ी चिंतित भी हूं। क्योंकि विधेयक के प्रारूप क्या होगा, अभी हमें पता नहीं। उन्होंने कहा कि इस बात पर भी कोई स्पष्टता नहीं है कि यह विधेयक कब पेश किया जाएगा। यह वही विधेयक है, जो 2008 में राज्यसभा में पारित हुआ था या एक पूरी तरह से अलग विधेयक पेश किया जाएगा।

ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के सांसद बदरुद्दीन अजमल ने कहा कि  हम इसका समर्थन करेंगे। जदयू सांसद रामनाथ ठाकुर ने कहा कि  हम मंगलवार को नए संसद भवन में जाएंगे, क्यों नहीं विधेयक वहां पेश किया जाए और उसे पूर्ण समर्थन से पारित कराया जाए। तृणमूल कांग्रेस के सुदीप बंद्योपाध्याय ने भी कहा कि नए संसद भवन में सरकार को बिना किसी देरी के विधेयक पेश करना चाहिए।


सपा ने भी समर्थन किया और कहा इस पर वह अपने पुराने रुख पर कायम है। सपा सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव ने कहा कि  वह इसमें ओबीसी, एससी और एसटी का आरक्षण चाहते हैं। जेएमएम की सांसद महुआ मांझी ने भी समर्थन करने की बात कह रहे है . महाराष्ट्र के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने कहा, महिलाएं सिर्फ ईवीएम का बटन दबाने नहीं बल्कि पुरषों की तरह बराबर का अवसर पाने की हकदार हैं।


गौरतलब है किबिल के पुराने स्वरूप में एक तिहाई आरक्षण के लिए हर चुनाव में इतनी ही सीटों का चुनाव रोटेशन के आधार पर तय करने का प्रावधान है। मतलब एक बार आरक्षित सीटें दूसरी बार महिलाओं के लिए आरक्षित नहीं होंगी। पुराने बिल में लगातार तीन बार एक तिहाई सीटों के आरक्षण के बाद महिला आरक्षण खत्म करने का प्रावधान था। इस बार पुराने बिल में किस तरह के बदलाव किए गए हैं, इसकी जानकारी बिल के संसद में पेश होने पर ही मिल सकेगी .

  ज्ञात हो कि पिछले कई दिनों से चर्चा में बन हुआ महिला आरक्षण विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। लगभग 27 वर्षों से लंबित महिला आरक्षण विधेयक पर नए सिरे से जोर दिए जाने के बीच आंकड़ों से पता चलता है कि लोकसभा में महिला सांसदों की संख्या 15 प्रतिशत से कम है, जबकि कई राज्य विधानसभाओं में उनका प्रतिनिधित्व 10 प्रतिशत से कम है। यह बिल सबसे पहले 12 सितंबर 1996 को संसद में पेश किया गया था। विधेयक में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है। आंकड़ों के अनुसार, मौजूदा समय में लोकसभा में 78 महिला सांसद हैं, जोकि कुल सांसदों का मात्र 14 प्रतिशत है। वहीं राज्यसभा में मात्र 32 महिला सांसद हैं, जोकि कुल राज्यसभा सांसदों का 11 प्रतिशत है।

आपको बता दें कि अगर संसद में महिला आरक्षण बिल पास हो जाता है तो लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभाओं में एक-तिहाई यानी 33 फीसदी सीटें  महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. महिला आरक्षण विधेयक के अनुसार, 33 फीसदी कोटा के अंदर अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति  और एंग्लो-इंडियन की महिलाओं के लिए एक तिहाई सीटें आरक्षित होंगी. इन आरक्षित सीटों को राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में अलग-अलग क्षेत्रों में रोटेशन प्रणाली से आवंटित किया जा सकता है. इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा.

बताया जाता है कि महिला आरक्षण विधेयक को सबसे पहले 1996 में संसद में पेश किया गया था. गीता मुखर्जी की अध्यक्षता में एक जॉइंट पार्लियामेंट्री कमेटी ने इस बिल की जांच की थी और सात सिफारिशें की थीं. इसके बाद 1998, 1999 और 2008 में विधेयक को पेश किया गया. 2008 में कमेटी की 7 सिफारिशों में से 5 को विधेयक में शामिल कर लिया गया था. इस मुद्दे पर आखिरी बार 2010 में कदम उठाया गया था. लेकिन कुछ सांसदों के विरोध के चलते यह बिल लोकसभा में पारित नहीं हो सका था. अगर महिला आरक्षण बिल संसद में पास हो जाता है और इस लागू कर दिया जाता है तो 33 फीसदी महिलाओं की भागेदारी होगी. लोकसभा की 545 सीटों में से करीब 180 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. जबकि राज्यसभा की 246 सीटों में 82 पर महिलाओं की भागीदारी होगी. चलिए राज्यों के हिसाब से लोकसभा सीट बंटवारे आंकडे़ समझते हैं.

कांग्रेस का  यह भी कहना  कि सबसे पहले राजीव गांधी ने 1989 के मई महीने में पंचायतों और नगर पालिकाओं में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था. वह विधेयक लोकसभा में पारित हो गया था, लेकिन सितंबर 1989 में राज्यसभा में पारित नहीं हो सका था. कांग्रेस नेता जयराम रमेश के अनुसार, ‘अप्रैल 1993 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्ह राव ने पंचायतों और नगर निकायों में महिलाओं को एक-तिहाई आरक्षण के लिए संविधान संशोधन विधेयक को फिर से पेश किया था. दोनों विधेयक पारित हुए और कानून बन गए. आज पंचायतों और नगर निकायों में 15 लाख से अधिक निर्वाचित महिला प्रतिनिधि हैं. यह आंकड़ा 40 प्रतिशत के आसपास है.’ कांग्रेस नेता ने कहा था, ‘‘महिलाओं के लिए संसद और राज्यों की विधानसभाओं में एक-तिहाई आरक्षण के वास्ते तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने संविधान संशोधन विधेयक लाया था. विधेयक नौ मार्च 2010 को राज्यसभा में पारित हुआ था, लेकिन लोकसभा में नहीं ले जाया जा सका.

मोदी सरकार जरुर  यह तर्क देगी कि उसने सभी राजनीतिक दलों से परामर्श किया है और बिल को कहीं अधिक आम सहमति के साथ लाया है. सभी राजनीतिक दलों ने सरकार से वर्तमान विशेष सत्र में ही बिल पेश करने के लिए कहा है. इसलिए, यह विधेयक भारतीय राजनीति में सबसे ऊंचे स्तर पर महिलाओं के महत्व को मान्यता देने में पीएम नरेंद्र मोदी की विरासत साबित हो सकता है. संसद के विशेष सत्र के शुरू होने से पहले दिन में पीएम मोदी ने कहा था कि इस सत्र में ऐतिहासिक फैसले होंगे. अपने भाषण के दौरान उन्होंने बताया कि कैसे महिलाओं ने संसद में योगदान दिया था और कुल मिलाकर 7,500 से अधिक सदस्यों में से लगभग 600 महिला सांसद संसद के दोनों सदनों की सदस्य थीं. मौजूदा वक्त में कुल लोकसभा सांसदों में लगभग 15 फीसदी महिलाएं हैं, जो निचले सदन में महिलाओं का अब तक का सबसे अधिक अनुपात है ।

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