भाजपा का संगठन बेहद मजबूत तो कांग्रेस को एंटी इनकम्बेंसी का मिल रहा फायदा

चुनाव प्रचार अभियान के चयरम पर प्रदेश में कांग्रेस और भाजपा के बीच अभी लगभग बराबरी की टक्कर दिख रही है। जहां कांग्रेस को एंटी इनकम्बेंसी का लाभ हो रहा है तो भाजपा केा अपने कार्यकर्ताओं की फौज, संघ परिवार और मजबूत संगठन का फायदा है। यानी सत्ता विरोधी लहर को भाजपा अपेन बेहद मजबूत संगठन के बल पर थामने की स्थिति में है। जहां तक टिकट वितरण की प्रक्रिया के दौरान बगावत का मामला है तो इस मामले में भी दोनों ही दल बराबरी पर हैं। इसी तरह लोक लुभावन घोषणाओं के मुद्दे पर भी कांग्रेस और भाजपा में बराबरी की टक्कर दिख रही है। कांग्रेस को जहांसमाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, आम आदमी पार्टी और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ ही जय आदिवासी संगठन जैसे दलों से खतरा है तो भाजपा को आंतरिक कलह पीछे कर रही है। यानी इस मामले में भी दोनों दलों को बराबरी का नुकसान है। जाहिर है चुनाव अभियान में आगेे होने के बावजूद भाजपा और कांग्रेस के बीच मध्यप्रदेश में फिलहाल बराबरी की टक्कर नजर आ रही है। दोनों ही दल टिकट वितरण की प्रक्रिया को अंतिम रूप देने में व्यस्त हैं। रविवार तक प्रदेश की प्रत्याशियों केसंदर्भ में तस्वीर स्पष्ट होगी। उसके बाद पता चलेगा कि चुनाव प्रचार अभियान के मामले में कौन आगे है? भाजपा के प्रमुख रणनीतिकार केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह इस समय पाँच राज्यों के टिकट वितरण में व्यस्त हैँ। सूत्रों के अनुसार भाजपा टिकट वितरण की प्रक्रिया हर हालत में शनिवार तक समाप्त कर देगी। इसके बाद अमित शाह और उनकी टीम का फोकस पूरी तरह से मतदान केंद्र प्रबंधन अभियान पर रहेगा। भाजपा झारखंड, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र  गुजरात और पंजाब तथा हरियाणा के कार्यकताओं और नेताओं की बहुत भारी फौज मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उतारने वाली है।

जहां तक चुनावी मुद्दों का प्रश्न है तो भाजपा के पास परंपरागत रूप से धु्रवीकरण का हथियार है। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और उनका लाभार्थी वोट बैंक भाजपा की अतिरिक्त रूप से फायदा पहुंचाएगा। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चोळान की महिलाओं में लोकप्रियता भी भाजपा का प्लस पाइंट है। कांग्रेस भ्रष्टाचार और कानून व्यवस्था के मुद्दे पर सरकार को घेरने की लगातार कोशिश करती रहेगी। यदि मध्य प्रदेश के चुनाव अभियान को अंचल के हिसाब से विश्लेषित करें तो कांग्रेस स्पष्ट रूप से महाकौशल और ग्वालियर चंबल अंचल में आगे है। जबकि भाजपा बुंदेलखंड और भोपाल तथा नर्मदापुरम संभाग में अपना पुराना प्रदर्शन दोहराने की स्थिति में है। महाकौशल अंचल में 38 और ग्वालियर चंबल अंचल में 34 विधानसभा सीटें आती हैं। दूसरी तरफ बुंदेखंड में 28 आग्र ग्वालियर तथा नर्मदा पुरम संभाग के मध्य भारत क्षेत्र में 36 विधानसभा सीटें हैं। विंध्य और बघेलखंड की 30 सीटों पर कशमकश और उलझन की स्थिति है क्योंकि समाजवादी और बहुजन समाज पार्टी ने यहां अपने प्रत्याशी खड़े गिए हैं। उत्तर ्रपदेश की सीमा में लगे हुए इस इलाके में फिलहाल बराबरी की टक्कर मानी जानी चाहिए। इसी तरह प्रदेश के सबसे महत्वपूर्ण मालवा और निमाड़ अंचल में जहां मालवा यानी उज्जैन संभाग में भाजपा बेहद मजबूत है। वहीं निमाड़ यानी इंदौर संभाग में (इंदौर जिले को छोड़कर) कांग्रेस का वर्चस्व दिख रहा है। इस अंचल में 66 विधानसभा सीटें आती हैं। पिछली बार मंदसौर गोलीकांड और कर्ज मुक्ति के लहर के बावजूद भाजपा ने यहां 29 विधानसभा सीटें जीती थीं।

2020 के घटनाक्रम के बाद हुए उपचुनाव में भाजपा ने यहां से बदनावर, सुवासरा, हाटपिपलिया, मंधाता, जोबट और सांवेर की सीटें कांग्रेस से छीन ली थी। भाजपा ने खंडवा लोकसभा उपचुनाव में भी सफलता प्राप्त की। कांग्रेस को यहां केवल अगर सुरक्षित विधानसभा सीट पर ही जीत मिली थी। 2022 के पंचायत एवं नगरीय निकाय चुनावों भी भाजपा ने मालवा और निमाड़ अंचल में शानदार प्रदर्शन किया था, लेकिन अभी भी निमाड़ अंचल की आदिवासी सुरक्षित सीटों पर कांग्रेस मजबूत दिखाई दे रही है। हालंकि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत दिवस आदिवासी अंचल का तूफानी दौरा िकया था और वहां उन्हें महिलाओं की जबरदस्त भीड़ मिली थी। फिर भी इस अंचल में मुकाबला को बराबरी का माना जा रहा है।      

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