Kota Suicides -कोचिंग क्लास में पढ़ रहे छात्रों की आत्महत्या क्यों नहीं रोक पा रही सरकार !
Kota Suicides -राजस्थान का कोटा पूरे देश में आईआईटी और मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी का गढ़ बन चुका है। एक अनुमान के मुताबिक ये कारोबार क़रीब हज़ार करोड़ से अधिक का हो चुका है।कोटा के इस कारोबार की नींव रखी एक ऐसे व्यक्ति ने जिसने लालटेन की रोशनी में पढ़ाई की और जिसे एक लाइलाज बीमारी के कारण अपनी अच्छी-खासी नौकरी छोड़नी पड़ी।उनके अनुसार “जब मैं पढ़ता था तो हमारे घर में बिजली नहीं थी। केरोसिन तेल की बदबू के बीच लालटेन की रोशनी में पढ़ाई होती थी। मेरी आंखें जब इस बारे में सवाल पूछ रही होतीं तो पिताजी कहते कि बेटा खूब पढ़ोगे, आगे बढ़ोगे तभी तुम्हारे घर में बिजली आएगी। बस बिजली के उजियारे की चाहत ने मुझमें मेहनत करने की ताकत भर दी।”ये बताते समय कोचिंग कारोबार के जनक माने जाने वाले वीके बंसल की आंखें व्हीलचेयर पर बैठे बैठे चमक उठती हैं।कोटा की जेके सिंथेटिक्स फैक्ट्री में सहायक इंजीनियर बंसल को मस्क्यूलर डिस्ट्रोफी नामक बीमारी के कारण 1991 में नौकरी से रिटायरमेंट लेना पड़ा।उसके बाद उन्होंने बसंल क्लासेज़ की शुरुआत बहुत छोटे स्तर पर की। नौकरी के दौरान भी वो घर पर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाया करते थे।कोचिंग संस्थान के पहले ही साल में बंसल के 10 छात्रों का आईआईटी में चयन हो गया।उसके अगले साल उनके 50 छात्र आईआईटी में चुने गए। बस इसके बाद तो कारवां चल पड़ा। और इसके साथ ही चल पड़ा वहां की पढाई में अनफीट रहने वाले या जबरदस्ती वहां बड़ा आदमी बनाने के चक्कर में भेजे जाने वाले छात्रों की आत्महत्या का सिलसिला । बंसल 2021 में गुजर गए मगर उन्होंने जिसकी शुरुआत की थी वह एक उद्योग के रूप में विकसित होने लगा और उससे कोटा की पहचान बन गई। हालांकि, विडंबना है कि बड़े संस्थानों के आने के बाद बंसल क्लासेज का वह प्रभाव नहीं रहा। इसके अधिकारियों का कहना है कि अन्य संस्थानों की जगह बंसल क्लासेज में योग्य उम्मीदवारों को ही प्रवेश मिलता है।बंसल के प्रवक्ता का कहना है, ‘पहले कोचिंग संस्थान प्रवेश परीक्षाओं के आधार पर ही छात्रों का दाखिला लेते थे मगर अब वे व्यावसायिक और व्यवसाय केंद्रित हो गए हैं।’ उन्होंने कहा कि आत्महत्या और मानसिक तनाव के कारणों में सहपाठियों के साथ तुलना, व्यस्त दिनचर्या के अलावा पारिवारिक और सामाजिक दबाव शामिल हैं।बंसल क्लासेज ने इसके उपाय के तौर पर सुझाव दिया है कि जेईई और नीट के पाठ्यक्रम से कम महत्त्वपूर्ण चीजों को अलग कर दिया जाए, छात्रों को साप्ताहिक अवकाश दिया जाए, छात्रावास में उपस्थिति बेहतर निगरानी की जाए, छात्रों के मनोभाव का विश्लेषण किया जाए और ऐसे पूर्व छात्रों के बारे में बताया जाए जो जेईई / नीट तो नहीं निकाल पाए मगर जीवन में बहुत सफल रहे।
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दरअसल कुछ लोगों के सफल होने के बाद लोग उनके परिवारों से अपने परिवारों की प्रतिस्पर्धा करने लगे है कि फलां का बेटा-बेटी डॉक्टर बन गया,हमें भी अपने बच्चे को डॉक्टर बनाना है।फलां की बेटी-बेटा कोटा हॉस्टल में है तो हम भी वही पढ़ाएंगे,चाहे उस बच्चे के सपने कुछ भी हो…हम उन्हें अपने सपने थोप रहे है।आज हमारे स्कूल(कोचिंग संस्थान) बच्चों को पारिवारिक रिश्तों का महत्व नही सीखा पा रहे,उन्हें असफलताओं या समस्याओं से लड़ना नहीं सीखा पा रहे।उनके जहन में सिर्फ एक-दूसरे से प्रतिस्पर्धा के भाव भरे जा रहे है जो जहर बनकर उनकी जिंदगियां लील रहा है।जो कमजोर है वो आत्महत्या कर रहा है व थोड़ा मजबूत है वो नशे की ओर बढ़ रहा है।जब हमारे बच्चे असफलताओं से टूट जाते है तो उन्हें ये पता ही नहीं है कि इससे कैसे निपटा जाएं।उनका कोमल हृदय इस नाकामी से टूट जाता है इसी वजह से आत्महत्या बढ़ रही है।
आत्महत्या का सिलसिला लगातार चल रहा है जो रुकने का नाम ही नहीं ले रहा है । कोटा में इस साल अब तक 23 छात्रों ने अपनी जिंदगी खत्म कर दी। यह एक साल का सर्वाधिक आंकड़ा है। कोटा के सबसे बड़े कोचिंग संस्थान एलेन में 1.25 लाख से भी अधिक छात्र पढ़ाई करते हैं। यहां की कक्षाएं संकल्प और सबल जैसे नौ खंडों में बंटी हुई हैं। ऐसे में छात्रों की दिनचर्या काफी व्यस्त हो जाती है और उन्हें पढ़ाई करने के लिए काफी जल्दी उठना पड़ता है।हजारों शिक्षक पांच-पांच घंटे से अधिक के दो बैच को पढ़ाते हैं। पहली बैच सुबह में चलता है और दूसरा बैच शाम के वक्त। कक्षाओं के बीच में एक हॉल में छात्रों को स्वाध्याय करते हुए आसानी से देखा जा सकता है।
आत्महत्या करने में ध्यान देने वाली व सबसे बड़ी दिल दहलाने वाली घटना जो आज भी चर्चा का विषय बनी की बात करें तो कुछ समय पूर्व कोटा में आत्महत्या करने वाली छात्रा कृति की ।कृति ने अपने सुसाइड नोट में लिखा था कि :-“मैं भारत सरकार और मानव संसाधन मंत्रालय से कहना चाहती हूं कि अगर वो चाहते हैं कि कोई बच्चा न मरे तो जितनी जल्दी हो सके इन कोचिंग संस्थानों को बंद करवा दें,ये कोचिंग छात्रों को खोखला कर देते हैं।पढ़ने का इतना दबाव होता है कि बच्चे बोझ तले दब जाते हैं।कृति ने लिखा था कि वो कोटा में कई छात्रों को डिप्रेशन और स्ट्रेस से बाहर निकालकर सुसाइड करने से रोकने में सफल हुई लेकिन खुद को नहीं रोक सकी।बहुत लोगों को विश्वास नहीं होगा कि मेरे जैसी लड़की जिसके 90+ मार्क्स हो वो सुसाइड भी कर सकती है,लेकिन मैं आप लोगों को समझा नहीं सकती कि मेरे दिमाग और दिल में कितनी नफरत भरी है।अपनी मां के लिए उसने लिखा- “आपने मेरे बचपन और बच्चा होने का फायदा उठाया और मुझे विज्ञान पसंद करने के लिए मजबूर करती रहीं।मैं भी विज्ञान पढ़ती रहीं ताकि आपको खुश रख सकूं।मैं क्वांटम फिजिक्स और एस्ट्रोफिजिक्स जैसे विषयों को पसंद करने लगी और उसमें ही बीएससी करना चाहती थी लेकिन मैं आपको बता दूं कि मुझे आज भी अंग्रेजी साहित्य और इतिहास बहुत अच्छा लगता है क्योंकि ये मुझे मेरे अंधकार के वक्त में मुझे बाहर निकालते हैं।”
कृति अपनी मां को चेतावनी देते हुए आगे लिखती है कि ‘इस तरह की चालाकी और मजबूर करने वाली हरकत 11 वीं क्लास में पढ़ने वाली छोटी बहन से मत करना,वो जो बनना चाहती है और जो पढ़ना चाहती है उसे वो करने देना क्योंकि वो उस काम में सबसे अच्छा कर सकती है जिससे वो प्यार करती है।इसको पढ़कर मन विचलित हो जाता है कि इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनो को छीन रहे है। इसको पढ़कर मन विचलित हो जाता है कि इस होड़ में हम अपने बच्चों के सपनों को छीन रहे है।
गौरतलब है कि कोटा के कोचिंग क्लास में पढ़ने वाले उन हजारों छात्रों के चेहरे से हंसी गायब रहती हैं जो भारत की दो सबसे कठिन परीक्षाओं- भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान- संयुक्त प्रवेश परीक्षा (IIT-JEE) और प्री-मेडिकल राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (NEET) की तैयारी करते हैं। हर साल 2 लाख से अधिक अभ्यर्थी राजस्थान कोटा आते हैं। ये छात्र मुख्यतः 11वीं और 12वीं में पढ़ाई करने वाले रहते हैं, जो हर साल इस शहर के लिए 5 हजार करोड़ रुपये का कारोबार करते हैं।शहर के साथ-साथ वे प्रेशर कुकर में भी प्रवेश करते हैं। छात्रों की दिनचर्या काफी व्यस्त है और इसलिए वे जबरदस्त दबाव झेलते हैं। इससे उबरने के लिए कुछ संस्थानों ने मनोचिकित्सकों को तैनात किया है। कुछ ने इसे आत्मसात कर लिया है और कुछ इससे पार नहीं पा रहे हैं। ऐसे में छात्रों की आत्महत्या आम बात हो गई है।
कैंपस में मनोचिकित्सक से परामर्श लेने वाले राज का कहना है, ‘यह मुख्य रूप से अभिभावकों (माता-पिता) द्वारा दिए जाने वाले दबाव का परिणाम है, लेकिन कभी-कभी बच्चे भी विफल हो जाने पर खुद को अपराधी मानने लगते हैं। हालांकि, राज का कहना है कि उनके माता-पिता ने उन पर कभी किसी तरह का दबाव नहीं डाला है। मनोचिकित्सक ने उन्हें पर्याप्त नींद लेने के बारे में बताया, जो पहले साल में वह नहीं ले पा रहे थे।’हरियाणा के फरीदाबाद की प्राची राजपूत का कहना है कि वह हर दिन चार से छह घंटे ही सो पाती हैं। वह सप्ताह में एक बार नृत्य भी करती हैं। छात्रों की बढ़ती आत्महत्याओं के बाद बीते दो महीनों से संस्थानों ने हफ्ते में एक बार कक्षाओं के बाद फन जोन की शुरुआत की है।
जब से कोटा में आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ है तब से उसने राज्य सरकार और अन्य को झकझोर कर रख दिया है। छात्रावासों में स्प्रिंग वाले पंखे लगाए गए ताकि उसके जरिये कोई आत्महत्या की कोशिश न करने पाए। कुछ समय पूर्व जिला प्रशासन ने कोचिंग संस्थानों द्वारा किसी तरह की परीक्षा लेने पर दो महीने की रोक लगा दी थी। स्थानीय छात्रावास संगठनों ने छात्रों का तनाव कम करने के लिए हाल में रॉक बैंड के जरिये एक मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन शुरू करवाया था ।कोटा पुलिस ने 11 कर्मियों की एक टीम बनाई है, जो हैंगआउट में छात्रों के साथ जुड़ती है और उन्हें जागरूक करती है। इस टीम के प्रमुख अपर पुलिस अधीक्षक चंद्रशील कुमार कहते हैं कि वे नियमित रूप से छात्रों और उनके अभिभावकों के साथ बातचीत करते हैं। अधिकतर छात्र मध्यम आय वर्ग से ताल्लुक रखते हैं जबकि कुछ छात्र निम्न आय वर्ग से आते हैं। पिछले दो महीनों में कुमार की टीम को 315 शिकायतें मिली । कुमार कहते हैं, ‘महज 25 से 30 शिकायतें तनाव या अवसाद से जुड़ी थीं और 5-6 शिकायतें गंभीर थीं।’
दरअसल आत्महत्या करने वालों में जेईई से अधिक नीट के अभ्यर्थी हैं। यह करो या मरो की स्थिति है। छात्रों के माता-पिता उन पर दबाव डालते हैं कि या तो आप सरकारी मेडिकल कॉलेज में दाखिला लें जहां की फीस निजी संस्थानों की तुलना में काफी कम है या फिर आप ऐसा नहीं कर सकते हैं। कुछ माता-पिता अपने बच्चों पर दबाव कम करने के लिए उनके साथ रहना पसंद करते हैं।मध्य प्रदेश के नर्मदापुरम की कंप्यूटर शिक्षिका रीना तोमर एक साल पहले अपने बेटे के साथ कोटा चली गईं। तब से दोनों मां-बेटा दो कमरे के एक फ्लैट में रहते हैं। तोमर कहती हैं, ‘मेरा बेटा जब स्कूल नहीं जाता है तो घर में ही रहता है। यहां तक कि अगर उसे एक कलम की भी जरूरत होती है तो मैं बाहर जाकर लाती हूं। बच्चों को तैयारी के लिए पूरा समय चाहिए।’ऐसे में यह देखना पड़ता कि इससे उनके बेटे पर पढ़ने का कहीं अधिक दबाव तो नहीं बन रहा है।
अंत में देखने वाली बात यह है कि राजस्थान में 1991 से जब से कोटा कोचिंग क्लास का हब बना व जबसे आत्महत्याओं का सिलसिला शुरू हुआ तब से कई सरकारें आई व गई पर आत्महत्याओं को रोकनें का ठोस हल कोई नहीं निकाल सका है ।