डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों में चीनी नमक और वसा के खतरनाक स्तर से विशेषज्ञ चिंतित

नई दिल्ली। युवाओं में जीवनशैली से संबंधित बीमारियों जैसे कैंसर, डायबिटीज, अनियंत्रित हाइपरटेंशन और कार्डियोवस्कुलर बीमारियों के बढ़ते मामले से चिन्तित विशेषज्ञों और चिकित्सकों ने फूड सेफ्टी स्टैंडर्ड्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (एफएसएसएआई) को पत्र लिखकर उपभोक्ताओं की जिम्मेदारी लेने के लिए कहा है।

इसके तहत सभी डिब्बाबंद और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों में चिन्ता वाले पोषण के लिए वैज्ञानिक और वैश्विक सहमति वाले ‘कट ऑफÓ को लागू करने की मांग की गई है। इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में न्यूट्रीशन एडवोकेसी इन पबलिक इंट्रेस्ट (एनएपीआई) के भाग हैं। यह एक थिंकटैंक है जिसमें तकनीकी विशेषज्ञ, शिक्षाविद, प्रशासन, चिकित्सा और जनस्वास्थ्य पेशेवर शामिल हैं और यह पिछले पांच वर्षों से जनहित में पोषण नीति पर काम कर रही है।

यह पत्र इस महीने के शुरू में हुए एक वेबिनार का परिणाम है। इसमें हाल में आयोजित व्यापक राष्ट्रीय पोषण सर्वेक्षण के आंकड़ों पर चर्चा की गई थी। सर्वेक्षण से पता चला है कि 5 से 19 साल के बच्चों में, 56 प्रतिशत में कार्डियोमेटाबोलिक जोखिम कारक थे। कुपोषित माने जाने वाले बच्चों में भी यह मौजूदगी ऐसी ही है। चौंकाने वाला एक तथ्य यह सामने आया कि गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) या जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों जैसे कैंसर, मधुमेह, अनियंत्रित उच्च रक्तचाप और हृदय रोग जैसी जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से हर साल 58 लाख से अधिक भारतीयों की मौत हो जाती है।

इन घातक बीमारियों का इलाज कठिन होता है, लेकिन आहार को संशोधित करके और एक स्वस्थ, स्थायी खाद्य प्रणाली का समर्थन करके आसानी से रोका जा सकता है। भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था के कारण डिब्बाबंद खाद्य पदार्थों की खपत बढ़ रही है और इनमें चीनी, नमक तथा खराब वसा की मात्रा ज्यादी होता है। ऐसे खाद्य पदार्थों की खपत, देश के सभी सामाजिक-आर्थिक समूहों के साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी है।

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