मिशन 2022: बसपा की चुनावी चौसर पर नहीं बिछ पा रही बिसात, जानें क्यों?
लखनऊ। चुनावी बयार में जहां दूसरे राजनीतिक दल अपने-अपने एजेंडे के साथ मैदान में कूद चुके हैं वहीं बसपा अपनी चुनावी चौसर भी ठीक से नहीं बिछा पाई है। सबसे पहले जोर-शोर से पूरे प्रदेश में ब्राह्मण सम्मेलन कराने की घोषणा को भी अमली जामा नहीं पहना पाई। अयोध्या में हुए ब्राह्मण सम्मेलन की हनक धीरे-धीरे नेपृथ्य में चली गई। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा भी बहुत है कि सबसे ज्यादा बसपा के सिपहसालारों ने दूसरी पार्टियों का हाथ थाम लिया इसकी भी भरपाई करना बसपा सुप्रीमो के लिए बड़ा लक्ष्य होगा।
ब्राह्मणों को रिझाने की मुहिम हुई कमजोर
सोशल इंजीनियरिंग से सत्ता का स्वाद चख चुकी बसपा ने एक बार फिर इसको अपना प्रमुख हथियार बनाया। पार्टी महासचिव सतीश चन्द्र मिश्र ने इसी कड़ी में ब्राह्मण सम्मेलन कराने की घोषणा कर दी। उन्होंने ब्राह्मण वोटरों को बसपा की पटरी पर लाने के लिए स्रम्मेलन की शुरुआत अयोध्या से की। इसके बाद विकास दुबे इनकाउंटर मामले में योगी सरकार को कठघरे में खड़ा करने के लिए कानपुर देहात का दौरा भी किया। यही नहीं यहां पर जेल में बंद खुशी दुबे का मुकदमा लड़ने की भी घोषणा की। इन सब कवायदों के बाद भी बसपा अन्य पार्टियों से पिछड़ गई। लखीमपुर प्रकरण में ब्राह्मणों की हुई मौत पर भी बसपा ने कोई खास बयान भी जारी नहीं किया।
पार्टी के बड़े नेताओं का मोह भंग
सत्ता से उतरने के बाद पार्टी के कई सिपहसालार दूसरी पार्टियों में जा चुके हैं। इसके साथ ही पार्टी के कुछ बड़े नाम अन्य पार्टियों में जाने की तैयारी कर रहे हैं। जिनमें पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष व कैबिनेट मंत्री रहे लालजी वर्मा और रामअचल राजभर का नाम उभरकर आ रहा है। सूत्रों का कहना है कि सात नवम्बर को यह नेता समाजवादी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। यही नहीं सपा के कद्दावर नेता और पूर्वांचल में अपनी धाक जमाने वाले अम्बिका चौधरी ने अखिलेश यादव से रूठकर बसपा का दामन थाम लिया था लेकिन जल्द ही उनका मोहभंग हो गया और अपने बेटे समेत समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए। इस प्रकरण में सबसे मजेदार बात यह रही कि उनका बेटा आनंद चौधरी जिला पंचायत सदस्य का चुनाव बसपा पार्टी से लड़कर जीता लेकिन बसपा छोड़ते ही वह सपा टिकट से जिला पंचायत अध्यक्ष का चुनाव लड़ गए। मोहनलालगंज लोकसभा सीट पर बसपा-सपा गठबंधन में पार्टी के तरफ से चुनाव लड़ने वाले सीएल वर्मा भी पार्टी का साथ छोड़कर सपा में जा चुके हैं।