राहुल-प्रियंका के लिए चुनौतियों से कम नहीं होगा ‘अमेठी’ का गढ़ बचाना
यूपी विधानसभा चुनाव को लेकर मचे घमासान के बीच जहां योगी सरकार पूरी तरह से चुनावी माहौल बनाने में जुटी हुई हैं तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी भी पूरे दमखम के साथ मैदान में डटी हुई हैं. हालांकि 2019 में हुए लोकसभा के चुनाव में अमेठी सीट कांग्रेस के हाथ से फिसल गई थी और उसके बाद कांग्रेस यहां दोबारा खड़े होने की जद्दोजहद में जुटी हुई है.
अमेठी: कांग्रेस का गढ़ कहे जाने वाले अमेठी में पार्टी के गिरते जनाधार को बढ़ाना राहुल और प्रियंका के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा. आगामी विधानसभा चुनाव में सपा और भाजपा के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए कांग्रेस में अभिमन्यु नहीं दिखाई पड़ रहे है. विगत चुनावों में भी प्रियंका गांधी की नुक्कड़ सभाएं व रोड शो का कोई फायदा नहीं मिला था. यहां तक सपा और कांग्रेस गठबंधन के बाद भी कांग्रेस एक भी सीट पर जीत दर्ज नहीं कर पाई थी. उत्तर प्रदेश के साथ-साथ कांग्रेस के गढ़ रहे अमेठी में कांग्रेस अपने वजूद की लड़ाई लड़ रही है. आम जनमानस के साथ-साथ कांग्रेस के नेताओं का भी धीरे-धीरे पार्टी से मोह भंग होता गया. अधिकांश नेता व कार्यकर्ता भाजपा का रुख कर लिए. अगर पिछले 3 चुनावों की बात करें तो कांग्रेस का जनाधार नीचे ही गया है. साल 2007 में जहां पार्टी के 2 विधायक चुनाव जीते थे. वहीं सपा और बसपा के खाते में 1-1 सीट गई थी. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को महज 2 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था. इस चुनाव में सपा ने बढ़त बना कर 2 सीट पर कब्जा कर लिया था. वहीं, लगातार जनाधार कमजोर होता देख वर्ष 2017 के चुनाव में सपा और कांग्रेस ने गठबधंन कर लिया. इसका भी फायदा कांग्रेस को नहीं मिला. फिलहाल इस चुनाव में अमेठी और गौरीगंज की सीटों पर गठबंधन नहीं हो पाया था. अमेठी से अमिता सिंह और गौरीगंज से मोहम्मद नईम चुनाव लड़े थे. फिलहाल दोनों प्रत्याशियों को हार का सामना करना पड़ा था. इस चुनाव में सपा को 1 सीट मिली थी. वहीं, भाजपा ने 3 सीटों पर जीत दर्ज की थी. पिछले चुनाव में प्रियंका गांधी ने अमेठी में कांग्रेस के लिए रोड शो और नुक्कड़ सभाएं कर कांग्रेस के लिए समर्थन जुटाने का असफल प्रयास किया था. जहां साल 2012 में आंशिक रूप से अमेठी में जनसभा कर कांग्रेस के वोट मांगा था. उससे भी कांग्रेस को कोई फायदा नहीं हुआ था. वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में प्रियंका गांधी ने कांग्रेस के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा कर वोट मांगा था. इन चुनावों में प्रचार के बाद भी प्रियंका इफेक्ट का कोई काम नहीं आया. वहीं, कांग्रेस की स्थिति और भी बदतर हो गई. यहां कांग्रेस सभी सीटें हार गई.
आगामी विधान सभा चुनाव में कांग्रेस के लिए मुसीबतें कम नहीं हुई है. जहां विगत विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस एक साथ मिलकर चुनाव लड़ी थी. बावजूद इसके कांग्रेस 4 सीटों में एक भी सीट जीत नहीं जीत सकी थी. यहां कांग्रेस का किला भरभरा कर ढह गया था. इस बार तो भाजपा के साथ-साथ सपा भी मुकाबले में खड़ी दिखाई दे रही है. कांग्रेस को धराशायी करने लिए भाजपा के साथ सपा भी कांग्रेस के लिए चक्रव्यूह रचना कर रही है. इस चक्रव्यूह को तोड़ने वाला कांग्रेस में अभिमन्यु दूर-दूर तक नहीं दिखाई पड़ रहा है. स्मृति ईरानी द्वारा बनाई गई पिच पर राहुल गांधी क्लीन बोल्ड हो गए. 2014 के आम चुनाव से कांग्रेस के गिरते जनाधार की शुरुआत हो गई थी. राहुल गांधी की जीत का मार्जिन कम होना और स्मृति का अमेठी में रुक जाना यह बता रहा था कि गांधी परिवार का किला धीरे-धीरे गिर रहा है. फिर भी कांग्रेसियों ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. साल 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पूरी तरह साफ हो गई. 2019 के आम चुनाव में रही सही कसर भी पूरी हो गई. जहां राहुल गांधी को भी शिकस्त का सामना करना पड़ा कांग्रेस के पास बड़े चेहरे भी समय के साथ कम होते गए. दीपक सिंह के अलावा अमेठी में कांग्रेस के पास कोई बड़ा चेहरा नहीं बचा है. अमेठी राजा संजय सिंह, अमिता सिंह सरीखे कद्दावर कांग्रेस के चेहरे पार्टी छोड़ दिए हैं. 2019 के आम चुनाव में राहुल गांधी को शिकस्त मिलने के बाद राजा संजय सिंह और अमिता सिंह ने भी कांग्रेस छोड़ दिया. भाजपा में शामिल होने से कांग्रेस पार्टी को तगड़ा झटका लगा. इस तरह पार्टी के कार्यकर्ता और नेता धीरे-धीरे किनारा कर लिए. कुछ विधानसभा क्षेत्रों में सामान्य कार्यकर्ता ही पार्टी में दावेदारी पेश कर रहे हैं.