Kathmandu: नेपाल के पूर्व राष्ट्रपति भंडारी और उपराष्ट्रपति किशाेर पुनः दलगत राजनीति में सक्रिय

Kathmandu: आम तौर पर संवैधानिक भूमिका में रहे राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद पर पहुंचने वाला व्यक्ति पद से हटने के बाद दलगत राजनीति में सक्रिय नहीं होता है। संविधान द्वारा प्रदत्त इस पद की गरिमा का मान रखते हुए जो भी व्यक्ति देश के इन दो सर्वोच्च पदों पर पहुंचता है ताे वह अपना कार्यकाल पूरा करने के बाद सक्रिय राजनीति से अघोषित संन्यास ले लेता है।

लेकिन नेपाल में यह विषय अपवाद का बन गया है। देश का संविधान जारी होने के बाद पहली बार राष्ट्रपति चुनी गईं विद्या भण्डारी और उपराष्ट्रपति नन्द किशोर दोनों ही पुन: एक साथ दलगत राजनीति में सक्रिय होते दिखाई दे रहे हैं । इस पद आने से पहले भंडारी नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी (एमाले) की उपाध्यक्ष थीं वहीं किशाेर माओवादी पार्टी के केंद्रीय सदस्य थे।

राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद का कार्यकाल पूरा करने के बाद ये दोनों ही पिछले कुछ दिनों से सक्रिय राजनीति में आने का संकेत दे रहे हैं। गुरुवार को हुई माओवादी केंद्रीय सचिवालय की बैठक में शामिल नन्द किशोर पुन: को पार्टी का उपाध्यक्ष बनाए जाने की तैयारी है। माओवादी पार्टी के महासचिव देव गुरूंग ने बताया कि पार्टी अध्यक्ष प्रचण्ड ने सचिवालय बैठक में पूर्व उपराष्ट्रपति पुन: को उपाध्यक्ष बनाए जाने का प्रस्ताव रखा है।

उधर पूर्व राष्ट्रपति विद्या भंडारी ने भी अलग-अलग मीडिया को दिए साक्षात्कार में खुद के दलगत राजनीति में सक्रिय होने का संदेश दे दिया है। उनका तर्क है कि नेपाल के संविधान में कहीं भी ऐसा नहीं लिखा है कि जो व्यक्ति राष्ट्रपति के पर पर पहुंच गया हो वह पुनः सक्रिय राजनीति में नहीं आ सकता है।

यह महज संयोग ही है कि जिस दिन पूर्व उपराष्ट्रपति माओवादी की पार्टी बैठक में सहभागी हुए उसी दिन यानि गुरुवार को ही पार्टी सचिवालय की बैठक के तुरंत बाद प्रधानमंत्री समेत रहे एमाले पार्टी के अध्यक्ष सीधे विद्या भण्डारी के निवास पहुंच कर उनसे ढाई घंटे तक चर्चा की थी। भंडारी को फिर से राजनीति में सक्रिय करने और आने वाले पार्टी महाधिवेशन से उनको अध्यक्ष बनाने के लिए एक बड़ा समूह लगा हुआ है।

एमाले के नेता गोकुल बास्कोटा ने कहा कि विद्या भंडारी पहले भी पार्टी उपाध्यक्ष के रूप में कार्य कर चुकी है अगर आने वाले महाधिवेशन से उनको पार्टी का अध्यक्ष बनाया जाता है तो निश्चित ही पार्टी और अधिक मजबूती के साथ आगे बढ़ेगी। उनका तर्क है कि केपी ओली के बाद पूरी पार्टी में एक वो ही ऐसी नेता हैं जो सर्वसम्मति से नेतृत्व से सकती हैं।

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उन्होंने यह भी दावा किया कि यदि विद्या भंडारी को पार्टी का कमान सौंपा जाता है तो पिछले पांच वर्ष में जितने भी बड़े-बड़े नेता पार्टी छोड़ कर गए हैं वो सब वापस पार्टी में वापस आ सकते हैं और उनके नेतृत्व में नेपाल के सभी कम्युनिष्ट दलों को फिर से एक किया जा सकता है।

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