Allahabad High Court: न्याय की पट्टी या अंधा इंसाफ? सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की असंवेदनशील टिप्पणी पर लगाई रोक”

Allahabad High Court: देश की सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के उस फैसले पर ऑब्जेक्शन के साथ रोक लगा दी हैं…जिसमें इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रेप विक्टिम को लेकर न सिर्फ असंवेदनशील टिप्पणी की…बल्कि रेप या फिर अटेम्प्ट-टू-रेप पर नई बहस ही छेड़ दी….दरअसल इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा था कि किसी लड़की के प्राइवेट पार्ट छूना या पकड़ लेना….उसके पायजामे का नाड़ा तोड़ देना….और जबरन उसे पुलिया के नीचे खींचने की कोशिश भर से रेप या अटेम्प्ट टु रेप का मामला नहीं बनता..अदालत ने इस संवेदनशील मामले पर जैसी टिप्पणी की थी….उससे छीछालेदर तो होनी ही थी…तो जब सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई तो जस्टिस BR गवई और जस्टिस AG मसीह की बेंच को भी हाईकोर्ट का ये रवैया नामंजूर गुजरा और इस कमेंट को तो सुप्रीम कोर्ट ने अमानवीय ही करार दे दिया.

मामला 3 साल पुराना हैं…यूपी के कासगंज की एक महिला ने 12 जनवरी, 2022 को कोर्ट में एक शिकायत दर्ज कराई आरोप लगाया कि 10 नवंबर, 2021 को वह अपनी 14 साल की बेटी के साथ कासगंज के पटियाली कस्बे में देवरानी के घर गई थी…..उसी दिन शाम को अपने घर लौट रही थी….रास्ते में गांव के रहने वाले पवन, आकाश और अशोक ने रास्ता रोक लिया…पवन ने बेटी को अपनी बाइक पर बैठाकर घर छोड़ने की बात कही….. मां ने उस पर भरोसा करते हुए बाइक पर बैठा दिया… लेकिन रास्ते में पवन और आकाश ने लड़की के प्राइवेट पार्ट को पकड़ लिया…. आकाश ने उसे पुलिया के नीचे खींचने का प्रयास करते हुए उसके पायजामे की डोरी तोड़ दी….लड़की की चीख-पुकार सुनकर ट्रैक्टर से गुजर रहे सतीश और भूरे मौके पर पहुंचे….इस पर आरोपियों ने देसी तमंचा दिखाकर दोनों को धमकाया और फिर फरार हो गए….

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पीड़ित बच्ची की मां अगले दिन थाने में FIR दर्ज कराने पहुंची…मगर यूपी की एनकाउंटर स्पेस्लिस्ट पुलिस के कान पर जूं नहीं रेंगी….जिसके बाद पीड़ित ने इन्साफ के लिए अदालत का दरवाजा खटखटाया….कोर्ट ने संज्ञान लिया तो शिकायतकर्ता और गवाहों के बयान रिकॉर्ड किए गए…आरोपी पवन और आकाश के खिलाफ IPC की धारा 376, 354, 354B और POCSO एक्ट की धारा 18 के तहत केस दर्ज किया गया…..वहीं आरोपी अशोक पर IPC की धारा 504 और 506 के तहत केस दर्ज किया….आरोपियों ने समन आदेश से इनकार करते हुए हाईकोर्ट के सामने रिव्यू पिटीशन दायर की….यानी कोर्ट से कहा कि इन आरोपों पर दोबारा विचार कर लेना चाहिए…. जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा की सिंगल बेंच ने क्रिमिनल रिवीजन पिटीशन स्वीकार भी कर ली….फैसला देने वाले जज जस्टिस राम मनोहर नारायण मिश्रा ने 11 साल की लड़की के साथ हुई इस घटना के तथ्यों को रिकॉर्ड करने के बाद यह कहा था कि….इन आरोप के चलते यह महिला की गरिमा पर आघात का मामला तो बनता है…लेकिन इसे रेप का प्रयास नहीं कह सकते…मायने पुरानी हिंदी फिल्मों में कानून की देवी जो आँखों पर पट्टी बांधे काफी अरसे तक मिसाल बनी रही…व्ही पट्टी क्या इन्साफ देने वाले न्यायाधीशों ने भी बाँध ली हैं…जिस देश ने निर्भया के लिए लम्बी लड़ाई लड़ी हो…उस देश में जिम्मेदार पद पर आसीन न्यायाधीश से ऐसी उम्मीद तो नहीं बनती.

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