विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने का किया प्रयास : बिरला
पानीपत। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास किये लेकिन वह सफल नहीं हो सके क्योंकि हमारे संतों और मनीषियों ने उसकी रक्षा की। बिरला ने गुरुवार को हरियाणा के पानीपत में श्रीकृष्ण वेद विद्यालय के नए भवन एवं श्री बांके बिहारी ज्ञानेश्वर मंदिर का लोकार्पण करने के बाद कहा कि विदेशी आक्रांताओं ने हमारी संस्कृति को नष्ट करने के प्रयास किये। किन्तु वे सफल नहीं हो सके क्योंकि हमारे संतों और मनीषियों ने उसकी रक्षा की।
उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि अब इन वेदशालाओं का निर्माण, वेदों का पठन-पाठन निश्चित रूप से वेद विद्या को देश में पुन: स्थापित करेगा। उन्होंने कहा कि भारत में आध्यात्मिकता, आस्था और श्रद्धा सामान्य लोकाचार में व्याप्त है। हमें वेदों और स्वयं से पहचान कराने का श्रेय अगर किसी को जाता है, तो यह भारत के संतों-मनीषियों को ही जाता है, जो त्याग की साक्षात प्रतिमूर्ति हैं। लोकसभा अध्यक्ष ने कहा कि वैदिक शिक्षा का हमारे आध्यात्मिक और सांस्कृतिक जीवन के साथ-साथ व्यावहारिक जीवन में भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है।
उन्होंने कहा कि वेद, वे दिव्य शब्द हैं जो किसी के बनाए नहीं हैं, लिखे नहीं है, जो सृष्टि के आरंभ से ही हमारे ऋषियों को प्राप्त हुए हैं। हमारे वेद ज्ञान और विज्ञान के अक्षय भंडार हैं जो आदि काल से ही हमारा आध्यात्मिक, वैचारिक और सांस्कृतिक मार्गदर्शन करते आए हैं। वेदों के अध्ययन के लिए विद्वता, शुचिता, नैतिकता आवश्यक है। बिरला ने जोर देकर कहा कि पूरे देश में वैदिक ज्ञान को संरक्षित और संवर्धित करने की सबसे अधिक आवश्यकता है। उन्होंने विशेष तौर पर युवा पीढ़ी को इस अनमोल ख़ज़ाने से परिचित कराने पर बल दिया ।
उन्होंने आगे कहा कि इस कार्य में सरकार के अतिरिक्त सामाजिक तथा आध्यात्मिक संगठनों की महत्वपूर्ण भूमिका होगी। उन्होंने हितधारकों का आह्वान किया कि महर्षि वेदव्यास प्रतिष्ठान जैसी संस्थाएँ प्रत्येक राज्य में बने, जो संस्कृत एवं वैदिक ज्ञान का शिक्षण व्यापक रूप से करे और इसे एक जनांदोलन का रूप देने में अपना योगदान करे। उन्होंने इस बात पर भी बल दिया कि वैदिक ज्ञान और संस्कृत शिक्षण के इस अभियान को आम जनता से जोड़ना अत्यन्त आवश्यक है।
उन्होंने आगाह किया कि जब तक यह जन आंदोलन नहीं बनेगा, संस्कृत को उसके उचित स्थान पर वापस लाना कठिन होगा। उन्होंने कहा कि विरासत को संजोना, उसको संभालना, नयी पीढ़ी को देना ये सबका पुनीत कर्त्तव्य है और भावी पीढ़ियों का उस पर अधिकार भी है।