उत्तराखंड : न्यायमूर्ति प्रफुल चंद पंत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष
नैनीताल। भारत के राष्ट्रपति, राम नाथ कोविंद ने एनएचआरसी यानी राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य उत्तराखंड मूल के न्यायाधीश न्यायमूर्ति प्रफुल्ल चंद्र पंत को 25 अप्रैल 2021 से इसके अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए अधिकृत किया है। सदस्य के रूप में नियुक्ति से पहले, न्यायमूर्ति पंत 22 अप्रैल 2019 से एनएचआरसी के सदस्य एवं इससे पूर्व 13 अगस्त 2014 से 29 अगस्त 2017 तक भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि न्यायमूर्ति पंत का जन्म तब उत्तर प्रदेश राज्य का हिस्सा रहे उत्तराखंड राज्य के पिथौरागढ़ जनपद में 30 अगस्त 1952 को हुआ था। अपनी प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा के बाद, उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान स्नातक की उपाधि प्राप्त की, और उसके बाद लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। न्यायमूर्ति पंत ने यूपी 1973 में बार काउंसिल इलाहाबाद में और इलाहाबाद में उच्च न्यायालय में कानून का अभ्यास किया।
फरवरी 1976 से नवंबर 1976 तक उन्होंने सगौर में इंस्पेक्टर सेंट्रल एक्साइज एंड कस्टम्स, एमपी और उत्तर प्रदेश सिविल (न्यायिक) सेवा परीक्षा, 1973 के माध्यम से उत्तर प्रदेश न्यायिक सेवा में प्रवेश किया। 1990 में उन्हें उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा में पदोन्नत किया गया। उत्तराखंड के नए राज्य के निर्माण के बाद, उन्होंने राज्य के पहले सचिव, कानून और न्याय मंत्री के रूप में उत्तराखंड में कार्य किया। नैनीताल में उत्तराखंड उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल के रूप में नियुक्त होने से पहले उन्होंने नैनीताल में जिला और सत्र न्यायाधीश का पद भी संभाला था।
न्यायमूर्ति पंत ने 29 जून 2004 को उच्च न्यायालय उत्तराखंड के अतिरिक्त न्यायाधीश पद की शपथ ली, जिसके बाद 19 फरवरी 2008 को उन्हें उत्तराखंड उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में शपथ दिलाई गई। उन्होंने 20 सितंबर, 2013 को शिलांग में मेघालय के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पद का कार्यभार संभाला और 12 अगस्त, 2014 तक जारी रखा। आगे बढ़ाए जाने पर उन्होंने 13 अगस्त, 2014 को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश पद की शपथ ली और 29 अगस्त 2017 तक इस पद की शोभा बढ़ाई।
उत्तराखंड उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बाद मेघालय हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के बाद अब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के सदस्य के बाद अब आयोग के अध्यक्ष के रूप में कार्य करने के लिए अधिकृत किए गए हैं। इस तरह वह यह सभी उपलब्धियां हासिल करने वाले उत्तराखंड राज्य के पहले व्यक्ति भी बन गए हैं। न्यायमूर्ति पंत उत्तराखंड के पहले निवासी हैं जो किसी प्रदेश के मुख्य न्यायाधीश और अब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश बनने के बाद देश के इस शीर्ष पर उनकी नियुक्ति हुई है।
उनसे पूर्व न्यायमूर्ति बीसी कांडपाल को ही उत्तराखंड हाई कोर्ट के कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश के रूप में कार्यरत रहने का गौरव प्राप्त हुआ था, जबकि उत्तराखंड उच्च न्यायालय के वर्तमान कार्यकारी न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीके बिष्ट भी उत्तराखंड के ही हैं।
मेघालय का मुख्य न्यायाधीष बनने पर उन्होंने अपनी उपलब्धि का श्रेय बड़े भाई चंद्रशेखर पंत को दिया था। इस मौके पर बातचीत में न्यायमूर्ति पंत ने कहा कि वह ईमानदारी और निडरता से कार्य करने वाले न्यायाधीशों को ही सफल मानते हैं।
पदोन्नति के बजाय मनुष्य के रूप में सफलता ही एक न्यायाधीश और उनकी सफलता है। आज भी वह 1976 में नैनीताल के एटीआई में न्यायिक सेवा शुरू करने के दौरान प्रशिक्षण में मिले उस पाठ को याद रखते हैं, जिसमें कहा गया था कि एक न्यायिक अधिकारी को ‘हिंदू विधवा स्त्री’ की तरह रहते हुए समाज से जुड़ाव नहीं रखना चाहिए। इससे न्याय प्रभावित हो सकता है।