सुरक्षा का सवाल बनाम राजनीति

अनिल मिश्र

चुनाव जीतने के लिए नए मुद्दों की तलाश में प्रधानमंत्री की सुरक्षा को घसीटना आज की राजनीति मे एक नए स्तर का उदाहरण है। पंजाब मे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फिरोजपुर रैली स्थगित होने के सिलसिले में जिस तरह अति विशिष्ट लोगों  की सुरक्षा जैसे गंभीर विषय को राजनीतिक रंग दिया गया है वह अतिरंजित है। 

यह देश की राजनीति मे शायद अपने तरह का पहला मामला है जिसमे प्रधान मंत्री जैसे उच्च पद पर आसीन व्यक्ति ने दलगत धारणाओं की वजह से एक प्रदेश मे जाकर अपनी राजनीतिक यात्रा  के दौरान सुरक्षा को लेकर देश मे एक अविश्वास को जन्म दिया। 6 जनवरी को हुई इस घटना के बाद पंजाब के मुख्यमंत्री चरणजीत सिंह चन्नी ने स्पष्ट किया है कि  प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के पूरे कार्यक्रम का विवरण केंद्र की एजेंसियों ने पीएमओ के साथ मिलकर तय किया था जिसमे राज्य सरकार का कोई हाथ नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि प्रधान मंत्री को हवाई मार्ग से आना था लेकिन आखिरी मौके पर उन्हें सड़क मार्ग से लाया गया। यही नहीं, पीएमओ को सूचित भी कर दिया गया था कि आगे प्रदर्शनकारियों ने रास्ता रोक हुआ था। “इस मामले में राजनीति नहीं होनी चाहिए, पंजाब के मुख्य मंत्री ने कहा और स्पष्ट किया कि “आखिरकार वह देश के प्रधानमंत्री हैं, हम अपने प्रधानमंत्री का पूरा सत्कार करते हैं।”

यहाँ यह भी ध्यान देने योग्य है कि प्रधानमंत्री पर कोई हमला नहीं हुआ, और अगर कोई शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने रास्ते पर आ गया तो इसे प्रधानमंत्री की सुरक्षा के साथ नहीं जोड़ना चाहिए। यह पहली बार नहीं हुआ है कि प्रधान मंत्री की गाड़ियों को रोकना पड़ा हो। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ है कि इस स्थिति को प्रधान मंत्री की जान को खतरा होने की स्थिति के रूप मे दर्शाया गया। वर्ष 2017 में प्रधान मंत्री के काफिले को उत्तर प्रदेश के गौतम बुद्ध नगर में मेट्रो लाइन के उद्घाटन मे जाते हुए रुकना पड़ा था। लेकिन इसे प्रधान मंत्री को खतरा होने जैसी स्थिति मे नहीं लिया गया था। 

वर्ष 2018 में प्रधान मंत्री दिल्ली में ट्रैफिक मे फँसने की वजह से रुकना पड़ा था, लेकिन इन मामलों को ऐसे पेश किया गया था कि वीवीआईपी संस्कृति के खत्म होने के तौर पर पेश किया गया था। ऐसे में पंजाब की घटना को प्रधान मंत्री की सुरक्षा को खतरा बटन इस प्रदेश मे चुनाव से जोड़कर देखा जा रहा है। 

इस संबंध में हाथरस जाने के दौरान राहुल गांधी के साथ जो हुआ वो भी लोकतंत्र का कोई अच्छा उदाहरण नहीं था, और न ही छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री को लखनऊ एयरपोर्ट से नहीं निकलने देने को सही ठहराया जा सकता। कई वर्ष पहले 2 अक्टूबर 1986 को  दिल्ली के राजघाट पर पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के प्रार्थना में सम्मिलित होने के दौरान अचानक गोलियां चलने लगीं थीं, लेकिन राजीव कहीं नहीं गए, वहीं खड़े रहे। जब उनसे कहा गया कि “देश आपकी सुरक्षा को लेकर बहुत चिंतित है” तो उन्होंने कहा था कि “कोई चिंता की बात नहीं है।”

ऐसे मे यह कहना कि पंजाब मे प्रधान मंत्री के काफिले को अपरिहार्य कारणों से रुकना पड़ गया तो प्रधान मंत्री की जान को खतरा हो गया, इसे पंजाब चुनाव से जुड़े होने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। 

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