मथुरा: वृन्दावन में विदेशी कृष्ण भक्तों का चातुर्मास शुरू, जानिए व्रत के नियम

थुरा। राधारानी की नगरी वृन्दावन के कृष्ण बलराम मन्दिर में रह रहे विदेशी कृष्ण भक्तों का चातुर्मास रविवार से शुरू हो गया है। सामान्य परंपरा के अनुसार गृहस्थों का चातुर्मास देवशयनी एकादशी से शुरू होता है जबकि संतो, महन्तों एवं धर्माचार्यों का चातुर्मास गुरू पूर्णिमा से शुरू होता है लेकिन इस्कॉन वृन्दावन में रह रहे विदेशी कृष्ण भक्तों का चातुर्मास गुरू पूर्णिमा के अगले दिन से शुरू होता है। चातुर्मास शुरू करने के पहले वे अपने गुरू से निर्विघ्न रूप से चातुर्मास सम्पन्न होने का आशीर्वाद लेते है।

इस्कॉन के वरिष्ठ साधक एवं भीष्म विभाग के अन्तर्गत चलने वाले व्रज नित्य सेवक के निदेशक राजविद्या दास ने बताया कि वृन्दावन के इस्कान में 200 ब्रह्मचारी चातुर्मास कर रहे हैं वहीं लगभग इतने ही गृहस्थ चातुर्मास कर रहे हैं। उनका कहना था कि दोनों के चातुर्मास में भगवत भजन पर अधिक बल दिया गया है। मायापुर में भी विदेशी कृष्ण भक्त इसी प्रकार चातुर्मास के व्रत के नियम का पालन करते हैं। सम्पूर्ण विश्व के इस्कान के अनुयायी चातुर्मास रहते हैं मगर वे आवश्यकता पड़ने पर बाहर भी जाते हैं।

उन्होंने बताया कि इस्कॉन के उन अनुयायियों को चातुर्मास में बाहर जाने की छूट होती है तो गीता, भागवत पर प्रवचन और प्रचार के लिए बाहर जाते हैं। वास्तव में यह भी एक प्रकार से चातुर्मास ही है क्योंकि इसमें भगवत गुणगान किया जाता है। इस्कान वृन्दावन के जनसंपर्क विभाग के निदेशक बिमलकृष्ण दास ने बताया कि चातुर्मास में जप, तप, और परिक्रमा सामान्य दिनों से दूनी से भी अधिक कर दी जाती है। चातुर्मास भगवत आशीर्वाद प्राप्त करने का साधन है। चातुर्मास की आराधना में स्वयं का आध्यात्मिक उन्नयन प्रमुख है। चातुर्मास के कुछ नियम एवं प्रतिबंध भी हैं ।

चातुर्मास के प्रथम माह में पत्तियों वाली सब्जी के खाने पर प्रतिबंध होता है वहीं अगले महीने में दही खाने पर प्रतिबंध रहता है।इसी प्रकार तीसरे महीने में दूध और चौथे महीने में उर्द की दाल का प्रयोग निषेध होता है। उन्होंने बताया कि प्रयास यह किया जाता है कि चातुर्मास में अधिक से अधिक समय वृन्दावन में रहें। अगर बाहर जाना हो तो गोवर्धन, चौरासी कोस या गहवरवन बरसाना की परिक्रमा की जा सकती है। बहुत जरूरी होने पर ही ब्रजमण्डल के बाहर जाते हैं। इस मास में शुद्ध सात्विक आहार पर भी बल दिया जाता है।

जनसंपर्क विभाग के प्रमुख बिमलकृष्ण दास ने बताया कि कार्तिक मास में बहुत से ब्रह्मचारी एवं गृहस्थ चौरासी कोस की ब्रजमंडल परिक्रमा भी करते हैं जो कि कृष्ण भक्ति का अनुठा साधन है। समान्यतया गुजरात के गोस्वामियों द्वारा ब्रजमंडल की परिक्रमा 45 दिन में पूरी की जाती है तथा इसको सामान्यतया राधाष्टमी के बाद प्रारंभ करते हैं वहीं इस्कान की ब्रजमण्डल परिक्रमा कार्तिक मास में ही पूरी की जाती है। दोनो में अन्तर यह होता है कि इस्कान की परिक्रमा में एक दिन में कुछ अधिक दूरी तय की जाती है। उन्होंने बताया कि चातुर्मास के व्रत के बाद जो आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है वह वर्ष पर्यन्त सही मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।उनका यह भी कहना था कि चातुर्मास में प्राप्त किये गए आध्यात्मिक उन्नयन का वर्णन शब्दों में करना संभव नही है।

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