UP News-आने वाली शताब्दी भारत की होगी : स्वामी अवधेशानन्द गिरि

UP News-वह देश जो निरन्तर प्रकाश में, ज्ञान में और समस्त प्रकार के विकास में रत है, वही भारत है। आने वाली शताब्दी भारत की होगी। वही समस्त विश्व का नेतृत्व करेगा। यह बात बुधवार को सनातन धर्म संस्कृति की दिव्य अभिव्यक्ति के महापर्व महाकुंभ प्रयागराज में अन्नपूर्णा मार्ग सेक्टर 18 में बुधवार को आध्यात्मिक मूल्यों के प्रस्फुटन, निर्बाध ज्ञान परंपरा के विकास, राष्ट्र अभ्युदय एवं समष्टि कल्याण हेतु समर्पित महाकुंभ शिविर में श्रीमद भागवत कथा के तीसरे दिन भक्तों को संबोधित करते हुए साधु, संत-महंत, महामंडलेश्वरों के विराट एवं प्रमुख संगठन श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा के प्रमुख श्रीमत् परमहंस परिवाज्रकाचार्य श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ अनंत श्री विभूषित जूना पीठाधीश्वर आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानन्द गिरि जी महाराज ने कही।

उन्होंने कहा कि हमारा परिवार विराट हो, अपनो की संख्या सिमट कर न रह जाए। हमें अपनों के बीच सामंजस्य बनाना आना चाहिए। उनके मन को सहलाना आना चाहिए। यही एक गृहस्थ साधक का धर्म है। यह चिंता का विषय है कि आज के युग में परिवार की परिभाषा बहुत संकुचित है।
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उन्होंने कथा के तृतीय दिवस उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि मनुष्य होने का अर्थ है- संपूर्ण स्वतंत्रता। मनुष्य को चिन्तन की, कर्म की, विचार की और सृजन की स्वतंत्रता प्राप्त है, और ब्रह्मा अनुभूति ही उसके जीवन का उद्देश्य है। ब्रह्मा अनुभूति, आत्मानुभूति दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं पर गुरु अनुग्रह के अभाव में वह घटित हो पाना संभव नहीं है। हम पर गुरु- कृपा, ईश्वरीय कृपा निरन्तर बनी हुई है, लेकिन वह हमारा अनुभव बनें यह प्रार्थना होनी चाहिए। महापुरुषों के समीप रहने से आत्म अथवा ब्रह्म सम्बन्ध प्राप्त होता है।

ध्रुव के जीवन में गुरु के रूप में देवर्षि नारद के आगमन की कथा सुनाते हुए गुरुदेव ने उपदेश दिया कि ‘ गुरुत्व की महनीय है। गुरु के शरीर से जुड़ाव होने से बेहतर है कि गुरु तत्व को समझा जाए। क्योंकि गुरु तत्व का नाम है, गुरु परंपरा का नाम है। यह गुरु परंपरा नारायण से आरंभ हो कर युगों युगों से हस्तांतरित हुई है। इसलिए हमें अपने गुरु और मंत्र को बदलना नहीं चाहिए। उसमें हमारी पूर्ण निष्ठा ही हमारे कल्याण में सहायक है।

राजा प्रियव्रत की कथा सुनाते हुए गुरुदेव कहते है कि प्रियव्रत का अर्थ ‘प्रियता के व्रत’ से है। हमारी अभिव्यक्ति और कार्यकलाप इस प्रकार हो कि हमसे किसी का अहित न हो अथवा हम किसी को आहत न करें। कोई व्यक्ति आपके द्वारा दिया गया सम्मान, द्रव्य, महंगे उपहार और सद्वचन भले ही भूल जाए लेकिन आपके द्वारा दिया गया अपमान वह कभी नहीं भूल सकता। इसलिए सतर्क रहें।

शिक्षा संस्कारित करती है और विद्या पूर्णता प्रदान करती है। समता लाती है, अनुशासित करती है, सही दिशा प्रदान करती है। ब्रह्मा जी भगवान नारायण की प्रथम संतान हैं और इस धरती का पहला कर्म उन्होंने तप किया। तप का अर्थ त्याग करने से है। भगवान ऋषभदेव और उसी क्रम में राजा भरत, रहुगण प्रसंग को उद्धृत करते हुए गुरुदेव कहते हैं कि शिष्य के कल्याण के लिए गुरु तब तक उसका पीछा करता है, जब तक कि शिष्य का उद्धार न हो जाए। भारत का अर्थ है प्रकाश में रत। वह देश जो निरन्तर प्रकाश में, ज्ञान में और समस्त प्रकार के विकास में रत है, वही भारत है। आने वाली शताब्दी भारत की होगी। वही समस्त विश्व का नेतृत्व करेगा।

इस अवसर पर प्रभु प्रेमी संघ की अध्यक्षा महामंडलेश्वर स्वामी नैसर्गिका गिरि, कथा यजमान किशोर काया, न्यासीगण विवेक ठाकुर, महेंद्र लाहौरिया, प्रवीण नरुला, रोहित माथुर, सुरेंद्र सर्राफ, मालिनी दोषी, सांवरमल तुलस्यान, देवेष त्रिवेदी सहित बड़ी संख्या में प्रभु प्रेमी गण उपस्थित रहे।

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